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स्व० बाबू श्री बहादुर सिंहजी सिंघी
भावभरेले हृदये मने विदाय आपता बोल्या के - 'कोण जाणे हवे आपणे फरी मळीशुं के नहिं ?" हुं एमना ए दुःखद वाक्यने बहु ज दबाएला हृदये सांभळतो अने उद्वेग पामतो, एमनाथी सदाना माटे छूटो पड्यो. ते पछी तेमनी साथै मुलाकात थवानो प्रसंग ज न आव्यो. ५-६ महिना तेमनी तबियत सारी - नरसी रह्यां करी अने आखरे जुलाईनी (सन् १९४४) ७ मी तारीखे तेओ पोताना विनश्वर देहने छोडी परलोकमां चाल्या गया. मारी साहित्योपासनानो महान् सहायक, मारी सेवानो महान् परीक्षक अने मारी निष्ठानो महान् प्रेरक सहृदय सुपुरुष आ असार संसारमा मने शून्य हृदय बनावी पोते महाशून्यमां विलीन थई गयो.
सिंघीजी जो के आ रीते नाशवंत स्थूळ शरीरथी संसारमां विलुप्त थया छे परंतु तेमणे स्थापेली आ ग्रन्थमाळा द्वारा तेमनुं यशः शरीर सेंकडो वर्षो सुधी आ संसारमां विद्यमान रही तेमनी कीर्ति अने स्मृतिनी प्रशस्तिनो प्रभावक परिचय सतत आप्यां करशे.
ॐ
सिंघी जीना सुपुत्रो नां सत्कार्यो
सिंधीजीना स्वर्गवासथी जैन साहित्य अने जैन संस्कृतिना महान् पोषक नररत्ननी जे मोटी खोट पडी छे ते
तो सहजभावे पूरा तेम नथी. परंतु मने ए जोईने हृदयमां ऊंची आशा अने आश्वासक आल्हाद शाय छे के तेमना सुपुत्रो - श्रीराजेन्द्र सिंहजी, श्रीनरेन्द्र सिंहजी अने श्रीवीरेन्द्र सिंहजी पोताना पिताना सुयोग्य सन्तानो होई पितानी प्रतिष्ठा अने प्रसिद्धिना कार्यमा अनुरूप भाग भजवी रह्या छे अने पितानी भावना अने प्रवृत्ति उदारभावे पोषी रह्या छे.
सिंघीजीना स्वर्गवास पछी ए बंधुओए पोताना पिताना दान-पुण्य निमित्त अजीमगंज विगेरे स्थानोमां लगभग ५०-६० हजार रुपीआ खर्च कर्या हता. ते पछी थोडा ज समयमां, सिंघीजीना वृद्धमातानो पण स्वर्गवास थई गयो अने तेथी पोताना ए परम पूजनीया दादीमाना पुण्यार्थ पण ए बंधुओए ७०-७५ हजार रुपीआनो व्यय कर्यो. 'सिंघी जैन ग्रन्थमाळा ' खाते पण ए सिंघी बंधुओए विगत वर्षमां, पिताजीर निर्धारेल विचार प्रमाणे पूर्ण उत्साहथी खर्च उपाडी लीधो, अने ते उपरान्त कलकत्ताना इन्डीयन रीसर्च इन्स्टीट्युटने बंगालीमां जैन साहित्य प्रकट करवा माटे सिंघीजीना स्मारकरूपे ५००० रूपीआनी प्रारंभिक मदत आपी.
सिंघीजीना ज्येष्ठ चिरंजीव बाबू श्री राजेन्द्र सिंहजीए, मारी इच्छा अने प्रेरणाना प्रेमने वश थई, पोताना पुण्यश्लोक पितानी अज्ञात इच्छाने पूर्ण करवा माटे, ५० हजार रुपीआनी नादर रकम भारतीय विद्याभवनने दान करी, अने तेना वडे कलकत्तानी उक्त नाहार लाइब्रेरी खरीद करीने भवनने एक अमूल्य साहित्यिक निधिरूपे भेट करी छे. भवननी ए भव्य लाईब्रेरी 'बाबू श्री बहादुर सिंहजी सिंधी लाइब्रेरी' ना नामे सदा ओळखाशे अने सिंघीजीना पुण्यार्थे ए एक मोटामां मोटी ज्ञानपरब बनशे. बाबू श्री नरेन्द्र सिंहजीए, पोताना पिताए बंगालनी सराक जातिना सामाजिक अने धार्मिक उत्थान निमित्ते जे प्रवृत्ति चालु करी हती, तेने अपनावी लीधी छे अने तेना संचालननो भार प्रमुख पणे पोते उपाडी लीधो छे. गत ( सने १९४४ ) नवेंबर मासमा कलकत्तामां दिगंबर समाज तरफथी उजवाएला 'वीरशासन जयन्ती महोत्सव'ना प्रसंगे तेना फाळामां एमणे ५००० रुपीया आप्या हता तेज कलकत्तामां जैन श्वेतांबर समुदाय तरफथी बांधवा धारेला "जैन भवन" माटे ३१००० रूपीआ दान करी पोतानी उदारतानी शुभ शरुआत करी छे. भविष्यमां 'सिंघी जैन ग्रन्थमाळा' नो सर्व आर्थिक भार आ बने बंधुओए उत्साह पूर्व स्वीकारी लेवानी पोतानी प्रशंसनीय मनोभावना प्रकट करीने, पोताना पिताना ए परम पुनीत यशोमन्दिरने उत्तरोत्तर उन्नत स्वरूप आपवानो शुभ संकल्प कर्यो छे. तथास्तु.
भा. वि. भ. मुंबई ]
- जिन विजय मुनि
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