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________________ se सिंघी जैन ग्रन्थ माला अने मारी जींदगी छे त्यां सुधी, जेटलुं साहित्य प्रकट करवा-कराववानी आपनी इच्छा होय ते प्रमाणेनी आप व्यवस्था करो. मारा तरफथी पैसानो संकोच आपने जराय नहीं जणाय'. जैन साहित्यना उद्धार माटे आवी उत्कट आकांक्षा अने आवी उदार चित्तवृत्ति धरावनार दानी अने विनम्र पुरुष, में मारा जीवनमां बीजो कोई नथी जोयो. पोतानी हयाती दरम्यान तेमणे मारा हस्तक ग्रन्थमाळा खाते लगभग ७५००० पोणोलाख रुपीआ खर्च कर्या हशे; परंतु ए १५ वर्षना गाळा दरम्यान तेमणे एकवार पण मने एम नथी पूछ्यु के कई रकम कया ग्रन्थ माटे खर्च करवामां आवी छे के कया ग्रन्थना संपादन माटे कोने शुं आपवामां आव्युं छे. ज्यारे ज्यारे हुं प्रेस इत्यादिना वीलो तेमनी उपर मोकलतो त्यारे त्यारे, तेओ ते मात्र जोईने ज ऑफिसमां ते रकम चुकववाना शेरा साथे मोकली देता. हुँ तेमने कोई बीलनी विगत संमजाववा इच्छतो, तो पण तेओ ते विषे उत्साह न बतावता अने एनाथी विरुद्ध ग्रन्थमाळानी साइझ, टाईप, प्रीटींग, बाइंडींग, हेडींग आदिनी बाबतमा तेओ खूब झीणवटथी विचार करता रहेता अने ते अंगे विस्तारथी चर्चा पण करता. तेमनी आवी अपूर्व ज्ञाननिष्ठा अने ज्ञानभक्तिए ज मने तेम कर्यो अने तेथी हुँ यत्किंचित् आ जातनी ज्ञानोपासना करवा समर्थ थयो. उक्त रीते भवनने ग्रन्थमाळा समर्पित कर्या बाद, सिंघीजीनी उपर जणावेली उत्कट आकांक्षाने अनुलक्षीने मने प्रस्तुत कार्यमाटे वधारे उत्साह थयो अने जो के मारी शारीरिक स्थिति, ए कार्यना अविरत श्रमथी प्रतिदिन वधारे-नवधारे झडपथी क्षीण थती जाय छे, छतां में एना कार्यने वधारे वेगवान् अने वधारे विस्तृत बनाववानी दृष्टिए केटलीक विशिष्ट योजना करवा मांडी, अने संपादनना कार्यमां वधारे सहायता मळे ते माटे केटलाक विद्वानोना नियमित सहयोगनी पण व्यवस्था करवा मांडी. अनेक नाना-मोटा ग्रन्थो एक साथे प्रेसमां छापवा आप्या अने बीजा तेवा अनेक नवा नवा ग्रन्थो छपावा माटे तैयार करवा मांड्या. जेटला ग्रन्थो अत्यार सुधीमां कुल प्रकट थया हता तेटला ज बीजा ग्रन्थो एक साथे प्रेसमां छपावा शुरु थया अने तेथी पण बमणी संख्याना ग्रन्थो प्रेस कॉपी आदिना रूपमा तैयार थवा लाग्या. ए पछी थोडा ज समय दरम्यान, एटले सप्टेंबर १९४३ मां, भवन माटे कलकत्ताना एक निवृत्त प्रोफेसरनी मोटी लाईब्रेरी खरीद करवा, हुं त्यां गयो. सिंघीजी द्वारा ज ए प्रोफेसर साथे वाटाघाट करवामां आवी हती अने मारी प्रेरणाथी ए आखी लाईब्रेरी, जेनी किंमत रु. ५० हजार जेटली मांगवामां आवी हती, सिंघीजीए पोताना तरफथी ज भवनने भेट करवानी अतिमहनीय मनोवृत्ति दर्शावी हती. परंतु ते प्रोफेसर साथे ए लाईब्रेरी अंगेनो योग्य सोदो न थयो अने तेथी सिंघीजीए, कलकत्ताना सुप्रसिद्ध स्वर्गवासी जैन सद्गृहस्थ बाबू पूरणचंद्रजी नाहारनी मोटी लाईब्रेरी लई लेवा विषे पोतानी सलाह आपी अने ते अंगे पोते ज योग्य रीते एनी व्यवस्था करवानुं माथे लीधुं. __कलकत्तामां अने आँखाय बंगालमा ए वर्ष दरम्यान अन्न-दुर्भिक्षनो भयंकर कराळ काळ वर्ती रह्यो हतो. सिंघीजीए पोताना वतन अजीमगंज, मुर्शिदाबाद तेम ज बीजां अनेक स्थळे गरीबोने.मफत अने मध्यवित्तोने अल्पमूल्यमा प्रतिमास हजारो मण धान्य वितीर्ण करवानी मोटी अने उदार व्यवस्था करी हती, जेना निमित्ते तेमणे ए वर्षमां लगभग त्रण-साडा त्रण लाख रुपीआ खर्च खाते मांडी वाळ्या हता. बंगालना वतनीयोमां अने जमीनदारोमां आवो मोटो उदार आर्थिक भोग ए निमित्ते अन्य कोईए आप्यो होय तेम जाणवामां नथी आव्यु. अक्टोबर-नवेंबर मासमां तेमनी तबियत बगडवा मांडी अने ते धीरे धीरे वधारे-ने-बधारे शिथिल थती गई. जान्युआरी (१९४४) ना प्रारंभमां हुं तेमने मळवा फरी कलकत्ता गयो. ता. ६ ठी जान्युआरीनी संध्याए तेमनी साथे बेसीने ३ कलाक सुधी ग्रन्थमाळा, लाईब्रेरी, जैन इतिहासना आलेखन आदि अंगेनी खूब उत्साहपूर्वक वातोचीतो करी परंतु तेमने पोताना जीवननी अल्पतानो आभास जाणे थई रह्यो होय तेम वच्चे वच्चे तेओ तेवा उद्गारो पण काढ्या करता हता. ५-७ दिवस रहीने हुं मुंबई आववा नीकळ्यो त्यारे छेल्ली मुलाकात वखते तेओ बहुज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002784
Book TitleDigvijaya Mahakavya
Original Sutra AuthorMeghvijay
AuthorAmbalal P Shah
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1949
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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