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________________ चतुर्थ संधि चतुर्थ संधि जेना हाथमा लीलाकमक, जेने हाथीओथी अनवरत अभिषेक कराय छे एवी लक्ष्मी देवी तमारा दारिदुःख हरी लो. कड व क १ अरुणोदय थतां सूर्यनी कांतिमा चंद्र जेम झांखो पडे तेम निस्तेज (समुद्र दत्त) रडती स्त्रीने छोडी दईने उद्विग्न मने पोताने नगर गयो. कुमारे वडिलोने वात करी, "मारी बहु चारित्र्यहीन छे." को स ल पुरी मां पोताना कुळरूपी गगनमां चंद्ररूप नंद नामे वाणियो हतोजेणे पोताना भुजदंड वडे विपुल कोश प्राप्त कर्यो हतो, जे गंभीर, प्रियवादी अने शुद्ध लेश्यावाळो हतो. तेने बहु स्तनभार वाळी पुष्प व ती नामे कृशोदरी स्त्री हती. स्वर्गमाथी च्युत थईने य शो म ती अने य शो दा बंने त्यां पुत्री तरीके अवतरी. कांतिम ती अने की ति म ती नामनी ते बंने य सुवर्णसमान वान वाळी, गजगति, हरणसमान विशाळ नयनवाली, चंद्र समान वदनवाळी, उत्तंग पयोधरवाळी, ने नवयौवन वडे मनोहर हती. कांतिम ती ने समुद्र दत्त परण्यो, ने की ति म ती ने तेनो भाई उदधि दत्त परण्यो, तेओ ते उत्तम स्त्रीओ-जे तेमनी पूर्व भवनी भार्याओ हती-साथे आनंद करवा लाग्या. परस्पर अतिशय स्नेहवाळा आमोदप्रमोद करता ने मनोहर भोग भोगवता एवा तेमनो तेमनी स्त्रीओ सहित देवोनी जेम काळ व्यतीत थवा लाग्यो. कड व क २ नंदनी पुत्री कान्तिम तीने अशोक दत्त नो पुत्र परण्यो एटले ए (नवा) संबंधनी शंख ने खबर पडी. तेमनो परस्परनो स्नेहसंबंध तूटी गयो. आवq जवु (वगेरे) व्यवहार बंध थई गयो. विषादसाथे शंख चित्तमां चिंतववा लाग्यो, "मारी दीकरी शीलवंती, विनीत, अने गुणानुरागी होवां छतां तेना पतिए तेने तजी दीधी. जेने दीकरी नथी ते खरेखर कृतार्थ छ,...... जेने दीकरी नथी तेनु कुळ निर्मळ छे, जेने दीकरी नथी ते सुखोनुं निवासस्थान ज छे. जेने दुर्नयना निधानरूप दीकरी नथी तेनुं कोण मानखंडन करी शके ? जेने दीकरी नथी ते माणस कुलीन छे ने ते कदी केमे य करी दीन (वचन) बोलतो नथी. जेने दुष्ट आचरणवाळी दीकरी नथी तेनी निष्कलंक कीर्ति जगतमां भमे छे. जेने दीकरी नथी ते घरे, बहार, परिजनोमां, स्वजनोमां ने जगतमा गरवो होय छे. निदोष लता पण पतिथी तजाएली (अने तेथी) यौवनभार बड़े शोकातुर एवी पीयर वसती दीकरी दारिद्मनी जेम मनने संतापे छे." कड व क ३ पद्मश्री पोताना कौशल ने ज्ञाननो (?) रातदिवस मूट मने विचार करवा लागी. "जेम दुःशील......तेम हुं निर्दोष छतां पतिए मने तजी दीधी. शुं में कोईनो घरवास भाग्यो, के व्रत लईने तेनुं अखंडित पालन न कर्यु ? शुं में पापणीए सरोवरमा रमताभमता हंसयुगलने विखुटुं पाड्युं ? पतिए तजेली नारी निष्कलंक होय तो ये दरेक जणने ते खराब चारित्र्यनी होवानी शंका पडे छे. पतिए तजेली नारी खूब क्षीण थई जाय छे, ने घरमा तेना बांधवो पण तेने गणतां नथी. पतिए तजेली नारी जे काई जुवे तेमां तेने मोठं कुळकलंक लागे छे. पतिए तजेली स्त्रीनी सामु परस्त्रीगमन करनारा विकारी पुरुष जोया ज करे छे. जेम सूर्यने ताप क्षण पण छोडतो नथी, तेम पतिए तजेली नारीने संताप क्षण पण छोडतो नथी. पतिए तजेली नारी पोताना बांधवोने लजावे छे, अने पोताने न गमतुं काम ते करे छे. पतिए तजेली नारी विधविध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002783
Book TitlePaumsiri Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhahil Kavi, Jinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1948
Total Pages124
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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