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तृतीय संधि लाग्यो. मा प्रसंगे खूब ज रोमांचित थयेला सार्थवाहे तेम ज शंखे वेवाईपक्षना बांधवोर्नु, स्वजनो मित्रो, वडिलो, परिजनो, सुवासिनीओ, वहुओ, कविओ, नटो, चेटो, भांड, भाट,...... मल्ल ने छात्रो एम सौ नगरवासीओनुं आभरण, ऊजळां वस्त्र, तांबूल, कुसुम, विलेपन, माणेक, मोती, अनेक प्रकारना खाद्य, पेय, भोजन वगेरे वडे सन्मान कयु. सौ संपूर्ण संतोष पामी (वाहनमा) चडी चडीने गया. जान (पण) सत्कार पामीने चाली. सौ अरसपरस साधे हसतां ने वात करता हता. जगतना नाथ, देवेंद्र थी वंदन करायेला, दिव्य दृष्टि वाळा जिनने प्रणाम करीने कुमार पम श्रीनो पल्लवसमान हाथ पकडीने बांधवो साथे घरे गयो.
द्वितीय संधि समाप्त
तृतीय संधि देवोथी पूजित, मोहरूपी अंधकारनो नाश करनारा, भव्यरूपी पंकजने आनंदित करनारा, गुणरूपी झगमगतां किरणोवाळां ऋषभ जिन ने हुं प्रणमुं छु. चंद्रमूर्तिनी जेम तिमिरसमूहने नष्ट करती, ज्ञानीओथी पूजित, कमळ (१. हरण, २. कमळ) थी युक्त, निर्मळ कळाए करीने सुंदर श्रुस देव तानो जय हो. चकचकित करेला सुवर्णना वर्णवाळी, श्रुतज्ञान युक्त, श्वेत सिंह पर आरूढ, हाथमां केरीनी लम धारण करती अंबा दे वी कल्याण करो.
कड व क १ आखा जगतने प्रकाशित करीने, घणा रागथी रंगायेला हृदयवाळो, संध्यावधूने मळवा आतुर एवो सूर्य अस्ताचलना शिखर पर आवी रह्यो.
सूर्य आथम्यो. संध्या थई. दिशाओ सोने घडी होय तेवी बनी रही. कमळमाथी नीकळ. ता भ्रमरोथी कमलिनी जाणे के काजळवालां आंसु सारती हती. चक्रवाकर्नु मन शोकातुर थतुं हतुं. मित्र(१.सूर्य, २. मित्र)नो वियोग कोने दुःख न दे ? बधाय दिशाना विस्तारो अंधारा बनी गया. भूत, राक्षस ने पिशाच कलकल करवा लाग्या. अंधारुं प्रसयु. लोको कांई पण कळी शकता न हता-जाणे के जगत गर्भवासमां फेंकवामां आव्युं न होय ! कुमुदवनने जगाडतो, कंदर्परूपी महान ओषधिना विशाल कंद जेवो चंद्र ऊग्यो. वनमा जेम मृगेंद्रश्री हाथीओर्नु जूथ नासे तेम चंद्रगथी अंधारानो ओघ नासवा लाग्यो. चंद्रकिरणोथी प्रकाशित गगनांगण चूमाथी धोळेलुं होय तेम शोभवा लाग्यु. रात्रीना पहेला पहोरे, जेमा काम उत्कट बने छे, ज्यां उत्तम धूपनी सुवास खूब मघमघे छे, ज्यां पचरंगी कुसुमोमी माळानी सुगंध छे, ज्यां भ्रमरनां बाळ मधुर रवे गूंजी रह्यां छे, ज्यां मणिमय मंगळ दीप प्रगटाच्या छे, तेवा मनोहर वासगृहमा कुमार पद्म श्री साथे पलंग पर बेठो. आनंदित थथेली सखीओ धरे गई. विधविध करणोए करीने देव समान सुख माणीने साक्षात् काम देव समो कुमार प्रियाने आलिंगन दईने सुई गयो.
कडवक २ रात सरी गई. सूर्य ऊग्यो. मध्य लोकरूपी पात्र (?) प्रकाशित थयु. झांखी पडेली कांतिवाळो चंद्र आथम्यो-कलंकवाळानो उदय ते स्थिर होय? सूर्यना भयथी नासीने, ओछो थई गयेलो अंधारानो ओघ गिरिकंदरा ने गुफाओमां संताई गयो. कमळसरोवर विकसेला कमळकोश साथे शोभवा लाग्यां. दोष (१ दोष, २ रात्री)चाली जतां, मित्र ( मित्र, २ सूर्य) आनंदित थाय ज ने! कुमुद बीडावा लाग्यो, भ्रमराओ मुक्त थवा लाग्या (?). मेलां होय सेनो स्नेह कदी स्थिर होय खरो? मुनिवरो स्वाध्याय अने ध्यान करवा लाग्यां. हंस किलोळवा लाग्यां. निर्मळ प्रभात थयु. (लोको) नवकार मंत्रनो पाठ करवा ने सिद्धोनी स्तुति करवा लाग्यां. पम श्री तेम ज कुमार जाग्या. बधु य प्रातःकार्य करीने बंने ये वडिलोना चरणकमळने प्रणाम को.
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