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________________ प्रास्ताविक वक्तव्य ६. जन्माभिषेक (अपभ्रंश) पत्र १-८. आ काव्यना नवा क्रमांक आपवामां आवेला छे. ७. दानादिप्रकरण (संस्कृत) पत्र ४५ श्लोक ५२६ कर्ता सूराचार्य : आ काव्यना पण जुदा क्रमांक छे. उपरनां काव्योना क्रमांकोने आधारे : (१) पुप्फवइकहा, सुलसक्खाणु, सागरपुत्रकथानक; (२) पउमसिरि चरिउ, अंजनासुंदरि चरिउ; (३) जन्माभिषेक; (४) दानादिप्रकरण. आ प्रमाणे जुदाजुदा विभागनी चार पोथीओ भेगी करीने आ पोथी बांधेली छे, एटले दरेकनुं माप सर नथी. एकंदरे तेमां चार जातनां पानां छे. प्रतिना क्रमांको पण एज पुरावाने टेको आपे छे. आ पोथीनो उल्लेख A Descriptive Catalogue of Mss at Patan : (G.O.S. LXXVI) by. C. D. Dalal and Pt. Lalacandra ना पृष्ठ १८३-१८४ उपर लेवामां आवेल छे. परंतु ते उल्लेखमां अचोकसाई अने अशुद्धि घणी छे, जो के वर्णन आदि - अंतनी पंक्तिओ टांकीने करवामां आव्यु छे. ३. धाहिलना 'पउमसिरिचरिउ'नी प्रतिमां उपर बताव्यु तेम पत्र १थी ५३ छे. प्रतिनी लंबाई १३॥ इंच अने पहोळाई १॥ इंचनी छे. एक पृष्ठ उपर २थी ४ पंक्तिओ छे. प्रत्येक पंक्तिमा लगभग ६०थी ६५ अक्षरो छे. प्रतिनो लेखनकाळ लगभग विक्रमनो बारमो सैको कही शकाय. वचमां आवेली पुष्पिकामां सं० ११९२ लहिआना लेखननी साल छे,-लगभग तेज अरसानी 'पउमसिरिचरिउनी नकल कही शकाय, प्रति बे विभागमा लखाई छे. सामान्य रीते ताडपत्रनी प्रतिओमां वचला भागमां पत्रोने ग्रथित राखवा वचे का' होय छे, अने बे छेडे हांसिआ होय छे, जेमा पत्रनो क्रमांक नोंधाय छे. अर्वाचीन मुद्रित ग्रंथो माफक पृष्ठ-क्रमांक हाथ प्रतोमा होतो नथी. प्रतिनी स्थिति अत्यंत जीर्ण छे. तेनां पानांनी कोरो कचित् कचित् खवाई गएली छे. अपवाद सिवाय प्रतिना अक्षरो खास गया नथी. प्रतिना कोई कोई पानाना अक्षरोने घसारो वधारे पडतो लाग्यो छे, त्यां अक्षरो झांखा थई गया छे तेम छतां वांचवामां खास घणी हरकत पडे तेम नथी. प्रतिने जरा उधेइ लागी छे तेम छतां अक्षर न वंचाय तेम नथी. प्रति जे पोथीमां छे ते पोथी आ एकज काव्यनी प्रतिनी नथी, परंतु तेमां जुदीजुदी प्रतिओना भागो ग्रथित करेला छे अने ते बधाय भागो मेगा बांधी ते प्रति बनावेली छे. ४. 'पउमसिरिचरिउ'नी आ एक ज प्रति उपरथी प्रस्तुत मुद्रित पाठ तैयार करवामां आव्यो छे. मुद्रित पाठ तैयार करवामां अमारे घणोज श्रम लेवो पड्यो हतो; तेम छतां य अनेक स्थळे दुर्बोधता हजुय कायम रही छे. आनुं कारण ए छे के लहिआए जे मूळ प्रति उपरथी आ प्रतिनो उतारो कर्यो छे ते प्रतिनो पाठ तेणे पूरेपूरो समज्या विना उतार्यो छे. ते उपरांत समकालीन ध्वनिविषयक विलक्षणताओनी छांट-अज्ञानथी कहो के बेदरकारीथी कहो-गमे ते कारणे लहिआए हाथ प्रतमां पुष्कळ ज वेरी छे. आ ध्वनिविषयक विल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002783
Book TitlePaumsiri Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhahil Kavi, Jinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1948
Total Pages124
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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