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________________ किंचित् प्रास्ताविक परंतु ते तरफ विद्वानोनुं खास लक्ष्य खेंचायुं न्होतुं अने भाषाविज्ञाननी दृष्टिये ते साहित्यनी आटली बधी विशिष्ट उपयोगिता छे तेनी खास चर्चा थई न हती. अपभ्रंशनी ए बधी कृतियो प्राकृत भेगी ज गणाती अने तेथी जूना कॅटेलॉग विगेरे बनावनाराओ पण प्राकृतना ग्रन्थो तरीके ज तेनी नोंधो करता रह्या हता. पूनाना ए विशाल राजकीय ग्रन्थसंग्रहमा पुष्पदन्त, स्वयंभू विगेरे अपभ्रंशना महाकवियोना तिसहिलक्खणमहापुराण, हरिवंसपुराण, पउमचरिउ विगेरे प्रन्थोनी अनेक प्रतियो संग्रहाएली हती; परंतु तेमनी यादियो करनारा, डॉ. पिटर्सन, डॉ. भांडारकर आदिये तेमने प्राकृत ग्रन्थो समजीने, ते वर्गनी नामावलिमा ज तेमनो समावेश करी दीधो हतो. २२ डॉ० याकोबीना उद्बोधन पछी, उक्त रीते ए भाषाना साहित्यनी ज्यारे विशिष्ट उपयोगिता जणाई त्यारे, जैन भाषासाहित्यना अभ्यासियोनुं ध्यान ए तरफ सविशेष आकर्षायु. तेमां सौथी प्रथम ध्यान आपनार भाई श्री दलालना विषयमा में ऊपर जणाव्यु छ ज. २३ मारुं पण लक्ष्य, ए साथे ज, ए तरफ दोरायुं. सन् १९१८ मा हुँ पूना गयो अने डॉ० गुणे आदिनी प्रेरणाथी, नूतन स्थापित थएला 'भांडारकर ओरिएन्टल रीसर्च इन्स्टीट्यूट'ने आर्थिक तेम ज साहित्यिक बंने प्रकारनी दृष्टिये प्रगति पर लाववा माटे, में मारो यथायोग्य सहकार आपवानो प्रयत्न आरंभ्यो. अत्यार सुधी सरकारी ग्रंथसंग्रह जे 'डे क न को ले ज'मा राखवामां आवतो हतो ते हवे ए इन्स्टीट्यूटमा लाववामां आव्यो हतो अने तेमा संग्रहाएला विपुलसंख्यक जैन ग्रन्थोनुं में मारी दृष्टिये परिश्रमपूर्वक अवलोकन करवा मांड्यु. ए अवलोकन दरम्यान मने एमा रहेला अनेक अपभ्रंश ग्रन्थोनी प्रतियो पण दृष्टिगोचर थई. अब्दुल रहमान कृत 'सन्देशरासक'नी एक जूनी प्रत, जे मने पहेलो पाटणमा मळी आवी हती अने जेनी नकल में करी राखेली हती तेनी बीजी प्रति ए संग्रह माथी मळी आवतो तेना आधारे तेने संशोधित - संपादित करी प्रकट करवानो विचार को. महाकवि पुष्पदन्त कृत 'तिसट्ठीलक्खणमहापुराण' अने स्वयंभू कविकृत 'पउमचरिउ' तेम ज 'हरिवंसपुराण'नी पण सरस प्रतो ए संग्रहमां मारा जोवामां आवी. मारा समान साहित्यप्रेमी विद्वान मित्र पं० श्री नाथूरामजी प्रेमी, जेओ अवार-नवार पूनामां आवीने मारी साथे वसता, सेओ पण ए विषयमां वधारे रस लेवा लाग्या. जैन साहित्यना संशोधन-प्रकाशननी रष्टिये में शरु करेला 'जैन साहित्य संशोधक' नामना त्रैमासिक पत्रमाटे तेमणे 'पुष्पदन्त और उनका महापुराण' ए नामनो एक विस्तृत गवेषणात्मक लेख लख्यो अने ते द्वारा अपभ्रंशना एक महाकविनी महान् ग्रन्थरचनानो प्राथमिक परिचय विद्वानोने आप्यो. स्वयंभू कविनी रचनाओ विषे पण ए लेखमां थोडोक उल्लेख करवामां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002783
Book TitlePaumsiri Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhahil Kavi, Jinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1948
Total Pages124
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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