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किंचित् प्रास्ताविक
अत्यन्त मुग्ध थई गयो हतो*. ए शाकुन्तलमा ज संस्कृत भाषा साथे प्राकृत भाषामा पण तेटला ज विस्तृत संवादो आलेखेला होवाथी संस्कृत साथे ज प्राकृत भाषानो पण परिचय करवानी आवश्यकता ए अभ्यासियो माटे अनिवार्य हती.
६ए ज समय दरम्यान, बौद्ध पाली साहित्यना अने जैन प्राकृत साहित्यना अनेक स्वतंत्र ग्रन्थोनो पण ए विद्वानोने परिचय थयो, तेम ज अशोक विगेरेना शिलालेखोनी जूनी ब्राह्मी लिपि उकेलातां, ते लेखोनी भाषा पण तत्कालीन लोकभापा प्राकृत छे एम जणवामां आव्यु. एटले संस्कृत साथे प्राकृत भाषाना साहित्यना अध्ययन अने अन्वेपणनी पण ए साथे साथे प्रवृत्ति शरु थई.
७ जेम में ऊपर सूचव्युं छे, आपणा देशमा प्राकृत भाषानुं ज्ञान संपादन करवामां आधारभूत थाय तेवा अनेक व्याकरणग्रन्थो जूना समयमां रचाया छे. एमां सौथी प्राचीन व्याकरण जे अत्यारे उपलब्ध थाय छे ते वररुचिकृत 'प्राकृत प्रकाश' छे. ब्राह्मण संप्रदायवाळाओ म्होटा भागे ए ज व्याकरणतुं अध्ययनअध्यापन करता आव्या छे. इंग्रेज विद्वान् कॉवेले, सौथी प्रथम सन् १८५४ मां, ए व्याकरणने इंग्रेजी भाषान्तर साथे प्रकट कर्यु हतुं. वररुचिर्नु ए व्याकरण जेम सौथी प्राचीन छे तेम संक्षिप्त पण छे. एमां अपभ्रंश भाषानो तो नाम-निर्देश पण नथी. घररुचि पछी सौथी विशेष प्रचार पामेलुं अने सौथी वधारे विस्तारवाढं प्राकृत व्याकरण, ते ऊपर जणाव्या मुजब, हेमचन्द्राचार्य, छे. जैन संप्रदायमां एज व्याकरगर्नु विशेष अध्ययन-अध्यापन थतुं आव्युं छे, अने एटला माटे एना ऊपर पछीना विद्वानोनां करेलां अनेक टीका टीप्पणो आदि पण विपुल परिमाणमां उपलब्ध थाय छे.
८ वर्तमान युगना प्रारंभकालमा प्राकृत भाषाना सौथी म्होटा वैयाकरण तरीकेनी ख्याति मेळवनार जर्मन विद्वान् रीचर्ड पिशले। हेमचन्द्राचार्यना ए प्राकृत व्याकरणनी सुसंपादित सर्वप्रथम आवृत्ति, जर्मनीना हाले शहरमांथी सन् १८७७ मां प्रकट करावी. ए पुस्तकमां अध्यापक पिशले दरेक सूत्रवार विस्तृत टिप्पणो आप्यां छे, अने तेमां, तुलनात्मक दृष्टिये, जूना प्राकृत शब्दोना मराठी, गुजराती,
* जर्मन महाकवि ग्योइथेए कालिदासनी 'शकुन्तला' ऊपर मुग्ध थईने, सन् १७९२ मां, एनी प्रशंसा करती ४ पंक्तियोर्नु एक भावपूर्ण पद्यमुक्तक जर्मनभाषामां बनाव्युं हतुं जेनुं अवतरण, तेम ज इंग्रेजी भाषान्तर देशविदेशना अनेक लेखकोए पोतपोतानी कृतियो निबन्धो विगेरेमा उद्धृत कयु छे. ए मुक्तक भाववाही गुजराती भाषांतर मारा विद्वान् मित्र साक्षर श्री अ० रामनारायण पाठके, मारी बिनतीथी हमणां ज मने करीने आप्यु छ जे अहिं उद्धृत कर छु.
जे वर्षना यौवनना प्रसून ने जे फळो आखरना, वळी जे भारद दे, तृप्त करे, झबोके आस्माने उत्सवानन्द मुग्धे,
धरा भने स्वर्गर्नु एक नाम जे, सौ साथे ते उच्चरतां शकुन्तला! पाणिनि स्मृत प्राचीन 'आपिशल' वैयाकरणनो पुनरवतार तो नहिं होय ।
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