________________
पं० ७५-९४]
चउत्थ संधि
॥ पत्ता ॥ लई पंच-महत्वय भाविं संजमि निच्चलु करवि मणु । तं ठाणु जेण लहु पावहि जेत्थु ण जम्मणु न वि मरणु” ॥ ७५
[७] आउच्छवि वंध[व] जणणि संखु वियरेविणु लोयह धणं असंखु ॥ ७६ । कारविवि महुच्छउ जिणहरेसु पडिलाहर्ण देविणं मुणिवरेसु[46] ॥७७ पउमसिरिइ पंच-महवयाइँ पडिवन्नइ सुर-गिरि-दुबहाइँ ॥ ७८ एक्कारसंगु आगमु विचित्तु वागरणु छंदु जोइसु निमित्तु ॥ ७९ थेवेण वि कालिं" विविह-सस्थ जाणिज्जहि तीऍ महंत गंथ ॥ ८० भावणह निचु भावेवि चित्त अणुदियहु चरइ तव-चरणं चित्तु ॥ ८१ ॥ सज्झाय झाणु उज्जमु करेइ गुरु-विणउ खंति दय आयरेइ ॥८२ सहुँ गणणिई वर-गामइँ भमंत । साकेय-नयरि गय जंत जंत ॥८३ कंतिमई-कित्तिमई-नामियाहँ पउमसिरि-अज विहरंत ताहँ ॥ ८४ गय गेहि ए वि अब्भुट्टियाउँ विणऍण नमंसेवि वइट्ठियाउँ ॥ ८५
॥ घत्ता ॥ पडिलाहिय दिवाहारेहि खीर-खंड-घिय-वंजणीह । निय-जम्मु सफलु मन्नंतिहि ताहिँ विहिँ वि हरिसिय-मणे[46B] हि ॥८६
[८] “भयवइ पसाउ अम्हह करेहि आवेजसु अणुदि] एत्थु गेहि ॥ ८७ निई धम्मु कहइ(?) मणि भावियाउ अम्हिहि दिति जिं सावियाउ"(१)॥ ८८ सा दिणि दिणि आवइ कहइ धम्मु निसुणंति ताउ परिहरिउ कम्मु ॥ ८९ थुइ-थोत्त-देववंदण पढंति पंचुंवरि महु-मज्जइँ" चयंति ॥ ९० अह अन्न-दियहि पउमसिरि-अज्ज विहरणहिँ आय धुय-पाव-पुंज ॥ ९१ पोएइ तु? कंतिमइ हारु ससि-किरण-कंति चउ-जलहि-सारु ॥९२ कंतिमइ मुएविणु हारु हिट्ठ वंदेवि आहारहु घरि पइ8 ॥ ९३ जं आसि जसोयहि दिन्नु आलु त कम्महु उदई खेत्तवालु ॥ ९४
1 लय. 2 मणुं. 3 ठाणुं. 4 मरणु. 5 विरएविणु. 6 धM. 7 कारववि. 8 परिलाण. 9 देविणु. 10 पउमसिरिय. 11 पडवंनइ. 12 काली. 13 निचु. 14 °चरj. 15 उजमु. 16 गणणिय. 17 भमंतु. 18 साकेइ. 19 जत. 20 कंतिमइं. 21 कित्तिमइं. 22 अभुठियाहु. 23 पइहिपाहु. 24 अंणुदिj. 25 निय”. 26 पंचूवरि. 27 मजंइं. 28 विहरणंहि. 29 तुह. 30 पई. 31 तहि. 32 उदई.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org