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खरतरगच्छ -गुर्वाषलिका ऐतिहासिक महत्त्व जावालिपुरका राजा उदयसिंह।
सं० १३१० वैशाख सुदि १३ शनिवार स्वाति नक्षत्रके दिन, श्रीमहावीर विधिचैत्यमें, राजा व प्रधान पुरुषोंकी उपस्थितिमें राजमान्य महामन्त्री जैत्रसिंहके तत्वावधानमें, पालनपुर, वागडदेश आदिके श्रावकोंके एकत्र होने पर श्रीचौवीस जिनालय आदिकी प्रतिष्ठा, दीक्षादि महामहोत्सवपूर्वक हुई।
___सं० १३१४ में माघ शु० १३ को राजा उदयसिंहके प्रमोदपूर्ण सान्निध्यसे कनकगिरिके मुख्य मन्दिर पर ध्वजारोप हुआ । वर्णगिरिका चाचिगदेव ।
___ सं० १३१६ के माघ सुदि ६ को, राजा चाचिगदेवके राजत्वकालमें स्वर्णगिरिके शान्तिनाथ मन्दिर पर खर्णमय ध्वजदंड व कलश स्थापित किये गये। भीमपल्लीका राजा माण्डलिक ।
सं० १३१७ वैशाख सुदि १० सोमवारको, मीमपल्लीमें राजा माण्डलिकके राजत्वकालमें दण्डनायक श्रीमीलगण (2) के सान्निध्यसे महावीर जिनालय पर स्वर्णदण्ड-कलशादि चढाये गये। चित्तौडका महाराजा समरसिंह ।
सं० १३३५ फा० कृ० ५ को, महाराजा समरसिंहके रामराज्यमें, चित्तौडके चौरासी मुहल्लेमें जलयात्रापूर्वक स्थानीय ११ मन्दिरोंके ११ छत्र व मुनिसुव्रत, आदिनाथ, अजितनाथ, वासुपूज्य प्रभुकी प्रतिमाएं स्थापित की गई। चित्तौडके युवराज अरिसिंह।
सं० १३३५ फाल्गुन शुक्ल ५ को, सकल राज्यधुराको धारण करने वाले राजकुमार अरिसिंहके सान्निध्यसे आदिनाथ मन्दिर पर ध्वजारोप हुआ। बीजापुर नरेश सारंगदेव ।
सं० १३३७ ज्येष्ठ कृष्ण ४ शुक्रबारको, महाराजाधिराज सारंगदेवके रामराज्यमें, महामात्य मल्लदेव व उपमंत्री विन्ध्यादित्यके कार्यकालमें, बीजापुरमें श्रीजिनप्रबोध सूरिजीका नगरप्रवेश बडे समारोहसे हुआ । मं० विन्ध्यादित्य सूरिजीकी स्तुति करता था। शम्यानयन (सिवाना) का राजा श्रीसोम ।
श्रीजिनप्रबोध सूरिजीने (सं० १३४० में ) सन्मुख आये हुए श्रीसोम महाराजाकी वीनति स्वीकार कर शम्यानयनमें चातुर्मास किया । जेसलमेर नरेश कर्णदेव ।
. सं० १३४० के फाल्गुनमें श्रीजिनप्रबोध सूरिजी जेसलमेर पधारे । नगर प्रवेश बड़े समारोहसे हुआ। राजा कर्ण ससैन्य दर्शनार्थ सामने आया। महाराजाके आग्रहसे चातुर्मास भी उन्होंने वहीं किया । जावालिपुरका राजा सामन्तसिंह ।
सं० १३४२ ज्येष्ठ कृष्णा ९ को, जालौर में सुप्रसन्न महाराजा सामन्तसिंहके सानिध्यसे अनेक जिन प्रतिमाओंकी प्रतिष्ठा और इन्द्रमहोत्सव सम्पन्न हुआ। शम्यानयनका महाराजा सोमेश्वर चौहान ।
सं० १३४६ फाल्गुन शुक्ल ८ को, महाराजा सोमेश्वरकारित विस्तृत प्रवेशोत्सवसे श्रीजिनचन्द्र सूरिजी शम्यानयन पधारे । सा० बाहड, भा० भीमा, जगसिंह, खेतसिंह सुश्रावकोंके बनवाए हुए प्रासादमें उन्होंने शान्तिनाथ प्रभुकी स्थापना की।
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