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________________ ८ खरतरगच्छ - गुर्वावलिका ऐतिहासिक महत्त्व कर सूरिजीको “जय पत्र" समर्पण किया । इस वर्णन में यह भी बताया गया है कि उसी वर्ष में महाराजाने भादानक देशको जीता था । इस शास्त्रार्थका वृत्तान्त बडे विस्तारके साथ इस गुर्वावली में दिया गया है जिसमें बहुत सी अन्य ऐतिहासिक बातें भी हैं । विशेष जाननेके लिये ' हिन्दुस्तानी' नामक त्रैमासिक पत्रिकामें प्रकाशित “पृथ्वीराजकी सभा में जैनाचार्योंका शास्त्रार्थ” नामक हमारा विस्तृत निबन्ध पढ़ना चाहिये । लपुर (पाटण) का राजा भीमदेव । सं० १२४४ में, अणहिलपुरका कोट्याधिपति श्रावक अभयकुमार तीर्थयात्राके हेतु संघ निकालने की इच्छासे महाराजाधिराज भीमदेव और प्रधान मंत्री जगदेव पड़िहारके पास गया और उनसे अरज करके स्वयं राजाके हाथसे अजमेर निवासी खरतर संघके नामका आज्ञापत्र लिखवा लाया। फिर एक विनंतिपत्र अपनी ओरसे श्री जिनपति सूरिजीको लिख कर अजमेर भेजा । सूरिजीने निमन्त्रण पा कर अजमेरी संघके साथ विहार कर दिया । तीर्थयात्राके अनन्तर बापस I लौटते हुए सूरिजी आशापल्ली पधारे। वहां चैत्यवासी प्रद्युम्न्नाचार्य से उनका शास्त्रार्थ हुआ जिसमें विजयलक्ष्मी सूरिजीको मिली । इससे प्रतिपक्षीके भक्त अभयड़ दण्डनायकने कुटिलतासे संघको यह कह कर अटका लिया कि - 'महाराजाधिराज भीमदेवकी आज्ञा है कि आप लोग हमारी आज्ञा बिना यहाँसे नहीं जा सकेंगे ।' इतना ही नहीं उसने संघकी चौकी के लिये १०० सैनिकोंकी गारद डाल दी । इस प्रकार १४ दिन संघ अटके रहा । इधर अपने बचाव के लिये अभयड़ दंडनायकने प्रतिहार जगदेवके पास, ( जो उस समय गुर्जर कटकके साथ मालव देशमें गया हुआ था ) पत्रके साथ, अपना सेवक भेज कर कहलाया - 'यहां सपादलक्ष - अजमेर का एक विशाल और वैभवशाली संघ आया हुआ है; यदि आपकी आज्ञा हो तो सरकारी घोडोंके लिये दाल-दानेका प्रबन्ध करलूंअर्थात् लूट कर या तंग कर द्रव्य एकत्र करूं ।' जगदेव अपने कर्मचारीसे पत्र सुन कर आगबबूला हो गया, और उसी क्षण अपने आज्ञाकारी व्यक्तिके हाथसे एक आज्ञापत्र लिखा भेजा कि - " मैंने बडे कष्टसे अजमेर नरेश पृथ्वीराज के साथ सन्धि की है; यह संघ भी वहीं का अतः इस संघकी तनिक भी छेडछाड मत करना । यदि करोगे तो तुम्हें गधेकी खालमें सिला दिया जायगा ।' जब अभयडको यह आज्ञा मिली तो उसने फौरन संघसे क्षमा मांग कर उसे खाने किया । लवणखेडाका राणा केल्हण । सं० १२४९ में श्रीजिनपति सूरिजी लवणखेडासे विहार करके पुष्करिणी, विक्रमपुर आदिमें विचरते हुए सं० १२५१ में अजमेर गये । दो मास वहां पर मुसलमानोंके उपद्रवके कारण बडे कष्टसे बीते । फिर पाटण, भीमपल्ली, कुहियप हो कर पुनः राणा केल्हण के आग्रहसे लवणखेटक पधारे । वहां 'दक्षिणावर्त्तआरात्रिकावतारणोत्सव' ast धूमधाम से मनाया । नगरकोटका राजा पृथ्वीचन्द्र । सं० १२७३ में (बृहद्वार) में गंगादशहरे पर गंगास्नान के लिये बहुतसे राणाओंके साथ महाराजाधिराज श्री पृथ्वीचंद्र नगरकोट से आया । उसके साथ पं० मनोनानन्द नामक एक काश्मीरी पण्डित भी था । उसने श्री जिनपति सूरिके उपाश्रय पर शास्त्रार्थके चैलैञ्जका नोटिश लगा दिया । तब सूरिजीके शिष्य जिनपालोपाध्याय आदि शास्त्रार्थ लिये महाराजा पृथ्वीचन्द्रकी सभा में आये, और वाद-विवाद में उक्त पण्डितको परास्त कर दिया । महाराजाने पण्डित चैलेखको फाड़ कर उपाध्यायजीको जयपत्र दिया । पालनपुरका राजकुमार जगसिंह । सं० १२८८ में पालनपुरके सेठ भुवनपालने, राजकुमार जगसिंहकी उपस्थितिमें ध्वजारोपणका उत्सव बड़े समारोह से मनाया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002780
Book TitleKhartar Gacchha Bruhad Gurvavali
Original Sutra AuthorJinpal Upadhyaya
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1956
Total Pages148
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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