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________________ खरतरगच्छ - गुर्वावलिका ऐतिहासिक महत्त्व बुद्धि के अनुसार समस्यापूर्ति की; पर उससे उन दक्षिणी विद्वानोंको सन्तोष नहीं हुआ । तब किसीसे श्रीजिनवल्लभ सूरिजी की प्रतिभाका परिचय पा कर राजाने यह समस्यापद उनके पास भेजा । सूरिजीने तत्काल ही सुन्दरता के साथ उसकी पूर्ति कर दी, जिससे समग्र विद्वान संतुष्ट हुए । फिर जब सूरिजी चित्तौड़से विहार कर धारा पधारे, तब नृपतिने उन्हें अपने प्रासादों में बुला कर उनसे धर्मोपदेश श्रवण किया। राजा सूरिजीका भक्त हो गया और उसने ३ लाख रुपये और ३ ग्राम उन्हें भेंट किये । परन्तु सूरिजी निरीह थे । उन्होंने उस दानका ग्रहण करना अस्वीकार किया, तब उनके उपदेशानुसार उसने चित्तौड़ के दो जैन मन्दिरोंमें २ लाख रूपयोंसे पूजाके लिये मण्डपिकाएं बनवा दीं । अजमेर के अर्णोराजका उल्लेख । श्री जिनदत्त सूरिजी जब अजमेर में पधारे तो वहांका राजा अर्णोराज स्वयं दर्शनार्थ आया और उनके उपदेशसे अतीव प्रसन्न हो कर उन्हें सर्वदा अजमेर में ही रहने की विज्ञप्ति की । परन्तु सूरिजीने साध्वाचारका स्वरूप बतलाया और समय समय पर वहां आते रहने का कह कर राजाको सन्तुष्ट किया । इस नृपतिने अजमेर के दक्षिणी भाग में पहाडी नीचे श्रावकोंको मन्दिर व निवासगृह बनानेके लिये यथेच्छ भूमि दी । હ त्रिभुवनगिरिका राजा कुमारपाल । श्री जिनदत्त सूरिजीने त्रिभुवनगिरि पधार कर वहांके महाराजा कुमारपालको प्रतिबोध दिया। श्रीशान्तिनाथ मन्दिरकी प्रतिष्ठा की और उधर के प्रदेशमें प्रचुरताके साथ अपने शिष्यों को विहार कराया । दिल्ली के महाराजा मदनपाल । सं० १२२३ में श्री जिनदत्त सूरिजीके शिष्य श्री जिनचंद्र सूरिजी दिल्लीके निकटवर्ती ग्राम में पधारे । उनको वन्दनार्थ जाते हुए श्रावक समुदायको राजप्रासादस्थित महाराजा मदनपालने देखा और मंत्रियोंसे सूरिजी के पधारने की खबर पाकर महाराजाने समस्त मुसाहिबों और सेनाको एकत्र किया और बड़े समारोह पूर्वक सूरिजी के पास गया । उनसे धर्मोपदेश श्रवण कर महाराजा अत्यन्त प्रमुदित हुआ और उनको अपने नगर में पधारनेकी अत्यन्त आग्रहपूर्वक विनंति की । सूरिजी अनिच्छाके होते हुए भी राजाके आग्रहसे दिल्ली पधारे। बड़े भारी समारोहसे उनका प्रवेशोत्सव हुआ । महाराजा मदनपाल स्वयं सूरिजी का हाथ पकड़े हुए उनकी पेशवाई में चल रहा था । राजाकी प्रार्थनासे उन्होंने वहीं चातुर्मास किया पर दुर्भाग्यवश उनका वहीं स्वर्गवास हो गया । आशिका नरेश भीमसिंह | श्री जिनपति सूरिजी सं० १२२८ में बब्बेर नगरको पधारे । संवाद पा कर अशिकाके श्रावक लोग राजा भीमसिंहके साथ सूरिजीके दर्शनार्थ आए । सूरिजी के उपदेशसे प्रसन्न हो कर उन्हें आशिका पधारनेकी वीनति की । राजाके विशेष अनुरोधसे श्री पूज्य आशिका आए । भूपति भीमसिंहके साथ पूर्वोक्त दिल्लीके प्रवेशकी भांति आशिका में प्रवेशोत्सव हुआ । सूरिजीने स्थानीय दिगम्बराचार्यके साथ शास्त्रार्थ किया और उसमें सूरिजीका विजय हुआ । इससे आशिका ( हांसी) नरेश बहुत प्रसन्न हो कर सूरिजी के प्रति श्रद्धालु बना । सं० १२३२ में मन्दिरकी प्रतिष्ठा करनेके हेतु सूरिजी फिर आशिका पधारे। उस समय आशिकाका वैभव दर्शनीय था । नगरके बाहर राजा भीमसिंहके आज्ञावर्त्ती राजाओंके तंबू-डेरे लगे हुए थे, राजकीय फौज - पलटनका जमघट लगा हुआ था । राजप्रासादों और बाग-बगीचों के मनोहर दृश्यसे आशिका नगरी चक्रवर्तीकी राजधानी सी प्रतीत होती थी । अजमेरका महाराजा पृथ्वीराज चौहान । श्री जिनपति सूरिजी सं० १२३९ में अजमेर पधारे। राजसभा में चैत्यवासी उपकेशगच्छीय पं० पद्मप्रभके साथ उनका शास्त्रार्थ हुआ, जिसमें सूरिजीकी विजय हुई | महाराजा पृथ्वीराजने स्वयं नरानयनके राजप्रासादोंसे अजमेर आ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002780
Book TitleKhartar Gacchha Bruhad Gurvavali
Original Sutra AuthorJinpal Upadhyaya
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1956
Total Pages148
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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