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खरतरगच्छ- -गुर्वावलिका ऐतिहासिक महत्त्व
जेसलमेर नरेश जैत्रसिंह ।
सं० १३५६ में राजाधिराज जैत्रसिंहकी प्रार्थनाको मान दे कर, श्रीजिनचंद्र सूरिजी मार्गशीर्ष शुक्ला ४ को जैसलमेर पधारे । पूज्यश्री के स्वागतार्थ महाराजा ८ कोश सम्मुख गया था । सं० १३५७ मार्गशीर्ष कृष्णा ९ को, महाराजा जैत्रासिंहके भेजे हुए वाजित्रोंकी ध्वनिके साथ मालारोपण व दीक्षा महोत्सव संपन्न हुआ ।
शम्यानयन नरेश शीतलदेव ।
संवत् १३६० में महाराजा शीतलदेवकी वीनति और मन्त्री नाणचन्द्र आदिकी अभ्यर्थनासे श्रीजिनचन्द्र सूरिजी शम्यानयन पधारे और शान्तिनाथ भगवान के दर्शन किये ।
- सुलतान कुतुबुद्दीन |
सं० १३७४ में, मन्त्रिदलीय ठक्कर अचलसिंहने बादशाह कुतुबुद्दीनसे सर्वत्र निर्विघ्नतया यात्रा करनेके लिये फरमान प्राप्त कर, नागौरसे संघ निकाला । जब मारवाड़ और वागड़ देशके नाना नगरोंको पार कर संघ दिल्लीके समीपवर्त्ती तिलप्रंथ नामक स्थानमें पहुंचा तो इर्ष्यालु द्रमकपुरीय आचार्य ( चैत्यवासी) ने यह कह कर उकसाया कि- 'जिनचन्द्र सूरि नामक साधु खर्णका छत्र सिंहासन धारण करता है।' बादशाहने संघको रोक लिया और ठक्कर अचलसिंहादिके साथ सूरिजीको अपने पास बुलाया । सूरिजीकी शान्त मुद्रा देख कर सम्राट् अत्यन्त प्रभावित हुआ और बातचीत होने पर उसे पूर्ण विश्वास हो गया कि द्रमकपुरी आचार्य मिथ्याभाषी है । अलाउद्दीनके पुत्र सुलतान कुतुबुद्दीन ने कहा- 'इन श्वेताम्बर मुनियोंमें उसके कथनानुसार एक भी बात नहीं पाई जाती' - अतः दिवानको हुक्म दिया कि इनके आचार व्यवहारकी अच्छी तरह परीक्षा कर अन्यायीको दण्ड दिया जाय । राज्याधिकारियोंने सूरिजीको निर्दोष पा कर दमकपुरीय आचार्यको गिरफ्तार कर लिया । दयालु सूरिजीने श्रावकोंसे कह कर उसे छुड़वा दिया । सूरिजीने दिल्लीकी खण्डासराय में चातुर्मास किया । पश्चात् सुलतान व संघके कथनसे प्राचीन तीर्थस्थान मथुराकी यात्रा करने पधारे ।
मेडताका राणा मालदेव चौहान |
सं० १३७६ में राणा मालदेवकी प्रार्थनासे श्रीजिनचन्द्र सूरिजी मेड़ता पधारे और वहां राणा व संघकी प्रार्थनासे २४ दिन ठहरे ।
दिल्लीपति गयासुद्दीन बादशाह ।
सं० १३८० में दिल्ली निवासी सेठ रयपतिके पुत्र सा० धर्मसिंहने प्रधान मन्त्री नेब साहबकी सहायतासे सम्राट् ग्यासउद्दीन द्वारा तीर्थयात्राका फरमान निकलवाया, और श्रीजिनकुशल सूरिजी के नेतृत्वमें शत्रुंजयादि तीर्थोंका संघ निकाला ।
सं० १३८१ में भीमपल्लीके सेठ वीरदेवने भी सम्राटसे तीर्थयात्राका फरमान प्राप्त कर श्रीजिनकुशल सूरिजी के उपदेशसे शत्रुंजयादि तीर्थों के लिये संघ निकाला । विशेष जाननेके लिए हमारी 'दादा जिनकुशलसूरि' नामका पुस्तक देखना चाहिये ।
सौराष्ट्र नरेश महीपालदेव ।
सं० १३८० में शत्रुंजय यात्राके प्रसंगमें, सेठ मोखदेवको, सौराष्ट्रमहीमंडनभूपाल महीपाल देवकी दूसरी देह सदृश अर्थात् अत्यंत प्रभावशाली लिखा है ।
बाडमेरनरेश राणा शिखरसिंह |
सं० १३९१ में श्रीजिनपद्म सूरिजी वाग्भटमेरु पधारे। उस समय चौहानकुलप्रदीप राणा शिखरसिंह, राजपुरुष व नागरिक जनों के साथ, सूरिजीके सन्मुख गया और महोत्सवपूर्वक उनका नगरप्रवेश कराया ।
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