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दम्पतियों का अंकन हुआ है। किन्तु यह अंकन भी शिष्टता की सीमा के भीतर पुरुष की नारी के प्रति सहज आकर्षण-भावना को मानों मर्यादा के साथ उभारता है।
सिरदल पर हाथ में मालाएँ और पुष्प-गुच्छक धारण किये, उड़ते हुए विद्याधर-युगलों की पंक्ति के मध्य 'शेष-कुण्डली' पर ललितासन विराजमान चतुर्भुज विष्णु की मूर्ति ललाट-बिम्ब के स्थान पर उत्कीर्ण है। इन्हीं के लिए इस भव्य मंदिर का निर्माण किया गया प्रतीत होता है।
अन्तिम सज्जा जो इस द्वार की शोभा को कई गुना बढ़ा देती है, वह सहज और सीधे बेलबूटों से बनाई गयी है, परन्तु उस पर केलि करते हुए बालक बहुत सुन्दर हैं।
सभी अंकन परम्परा और गुप्तकालीन कला-समृद्धि के अनुरूप हैं।
इस मन्दिर की उत्तरी देवकुलिका में गजेन्द्र मोक्ष की कथा का अंकन है। पूर्वी देवकुलिका में नर और नारायण की तपस्या तथा दक्षिणी में शेषशायी विष्णु के बहुत सुन्दर और प्रभावोत्पादक आलेखन हैं। गर्भगृह में अब कोई मूर्ति नहीं है।
उत्तर भारत में पाषाण-निर्मित शिखर का प्राचीन नमूना केवल एक मिलता है, और वह है देवगढ़ का दशावतार मन्दिर। प्रतीत होता है कि यह मन्दिर सीधी रेखाओं से निर्मित पिरामिड के समान था, जिसकी मेधियाँ क्रमशः छोटी होती गयी थीं। द्वार-स्तम्भ पर शिखर की प्रतिकृति अब भी अवशिष्ट है, जिससे ज्ञात होता है कि कोनों पर तथा शिखर पर आमलक बनाये गये थे। वस्तुतः यहाँ गुप्तकालीन शिखर का वह रूप देखने को मिलता है जो क्रमशः पिरामिड की आकृति का, अण्डाकार, अधिक विकसित तथा अलंकृत होता गया।
देवगढ़ के ही शासकीय संग्रहालय में सुरक्षित अवशेषों से इस मन्दिर के अधिष्ठान की भव्यता का आभास होता है। इन अवशेषों में-अहल्या उद्धार, वन-गमन, अगस्त्याश्रम में राम, लक्ष्मण और सीता का जाना, शूर्पणखा काण्ड, वालि-सुग्रीव युद्ध, लक्ष्मण तथा सुग्रीव का पुनर्मिलन, हनुमान् द्वारा संजीवनी बूटी का लाया जाना आदि के अंकनवाले शिलापट्ट मुख्य हैं। कृष्णजन्म, नन्द-यशोदा द्वारा बलदेव और कृष्ण को खिलाना, शकट लीला, वामनावतार आदि के दृश्य भी कुछ अवशेषों पर उत्कीर्ण हैं।
दशावतार मन्दिर के सन्दर्भ में उसके सहोदर जैन मं. सं. 15 (चित्र संख्या 26) का उल्लेख अनिवार्य है। जैसा कि कहा जा चुका है, इसका प्रेरणास्रोत वह या उसका प्रेरणास्रोत यह रहा है।
(इ) सती-स्तम्भ
देवगढ़ के मध्यकालीन समाज में सती प्रथा प्रचलित थी। इसके प्रमाण करीब बीस स्तम्भ अब भी वर्तमान ग्राम के निकट यत्र-तत्र विद्यमान हैं।
स्मारक::89
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