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इस अभिलेख से नीचे (बेतवा) की ओर अनेक देवकलिकाओं में विभिन्न देव-देवियों की मूर्तियाँ अंकित हैं, जिनमें से चतुर्भुज विष्णु, सूर्य, लक्ष्मी, गंगा-यमुना, शिवलिंग और सप्तमातृकाएँ विशेष उल्लेखनीय हैं। कुछ मूर्तियाँ खण्डित हो गयी हैं और कुछ को काटकर ले जाया गया प्रतीत होता है।
इस घाटी में दो लघु गुफाएँ और भी हैं, जो तपस्या में सहायक रही होंगी।
(ब) सिद्ध की गुफा
देवगढ़ दुर्ग में अधित्यका के दक्षिणी किनारे एक गुफा है, जिसे 'सिद्ध की गुफा' कहते हैं। यह पर्वत काटकर तैयार की गयी है। इसका मार्ग पहाड़ी पर से सीढ़ियों द्वारा नीचे जाता है। इसके तीन द्वार हैं। दो स्तम्भों पर छत भी अवस्थित
इस गुफा में अनेक अभिलेख उत्कीर्ण हैं। उनमें सबसे प्राचीन अभिलेख संवत् 609 (552 ई.) का है। गुप्तकालीन इस अभिलेख में सूर्यवंशी स्वामी भट्ट का उल्लेख हुआ है।
इसी गुफा के एक अन्य अभिलेख में उल्लेख है कि राजा वीर ने संवत् 1342 में कुरार को जीता था।
इसमें अंकित कुछ अभिलेखों से राजवीरों के इतिहास पर भी प्रकाश पड़ता है। संवत् 1789 के दस पंक्तियों के अभिलेख में चन्देरी के परवर्ती बुन्देला सरदार महाराजाधिराज देवीसिंह तथा उसके पौत्र दुर्गासिंह का वर्णन है। इसी में राजा उदेत सिंह, छत्रसाल, कुशलसिंह और तेजसिंह का चरित्र भी वर्णित है।
__ संवत् 1808 के अभिलेख में अनूपसिंह, बहादुर और हरीसिंह आदि का उल्लेख हुआ है।
अनुमान है कि यह गुफा सिद्ध-साधकों की साधना-स्थली रही होगी।
(स) वराह मन्दिर
देवगढ़ दुर्ग में अधित्यका के दक्षिणी-पश्चिमी कोने पर एक विशाल मन्दिर के अवशेष विद्यमान हैं। यद्यपि मन्दिर ध्वस्त हो गया है परन्तु उसका अधिष्ठान सुरक्षित है। यह अधिष्ठान सतह से प्रायः सात फुट ऊँचा है। विशाल आमलक, अनेक स्तम्भ एवं अन्य सामग्री इसी के निकट पड़ी हुई है।
डॉ. डी. बी. स्पूनर और रायबहादुर दयाराम साहनी' जिन्होंने कि उस समय
1. ए. एस. आइ. : एनुअल रिपोर्ट, 1917-18, भाग 1, पृ. 7। 2. एनुअल प्रोग्रेस रिपोर्ट, 1918, पृ. 8।
86 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
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