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________________ जैनेतर स्मारक (अ) घाटियाँ देवगढ़ दुर्ग में पर्वत के दक्षिण की ओर चट्टानें काटकर दो घाटियों का निर्माण हुआ है : (1) नाहरघाटी (पूर्व में), (2) राजघाटी (पश्चिम में)। (1) नाहरघाटी-देवगढ़ दुर्ग की दक्षिणी अधित्यका पर पूर्व की ओर बेतवा के प्रवाह तक पहुँचने के लिए एक सोपान मार्ग है, उसे 'नाहरघाटी' कहते हैं। यहाँ पर्वत को काटकर लगभग 100 सीढ़ियाँ बनाई गयी हैं। वर्षा का पानी इन्हीं पर से बहता है। अतः वे अनेकशः जीर्ण-शीर्ण हो गयी हैं। इस सोपान मार्ग के बाजू में चट्टानों पर अनेक उल्लेखनीय मूर्तियाँ तथा अभिलेख उत्कीर्ण हैं। यहाँ पर दस फुट लम्बी और दो फुट ऊँची एक देवकुलिका में सप्तमातृकाओं की सुन्दर मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। इनके प्रारम्भ में शिव तथा अन्त में गणेश का अंकन है। शिव के पश्चात् चतुर्मुख ब्राह्मी की मूर्ति पद्मासन में उत्कीर्ण हैं। वह अपने बायें हाथ में अक्षमाला लिये है। इसके उपरान्त सिंह पर आरूढ़ पार्वती अपनी गोद में गणेश को धारण किये है। तीसरी मातृका मूर्ति गरुड़ासनी वैष्णवी की है। चौथी मूर्ति कुबेर की पत्नी कौमारी की है, वह मनुष्य पर आरूढ़ है। पाँचवीं मूर्ति वाराही की है। छठवीं और सातवीं मूर्तियाँ क्रमशः गजासना इन्द्राणी तथा चामुण्डा की हैं। इस देवकुलिका के ऊपरी बहिर्भाग में गुप्तकालीन ब्राह्मी लिपि में सात पंक्तियों का एक अभिलेख उत्कीर्ण है। उसकी भाषा विशुद्ध साहित्यिक संस्कृत है। इसमें गोमिलका के पौत्र तथा केशव के पुत्र स्वामी भट्ट के द्वारा सप्तमातृकाओं के निमित्त एक अविनश्वर मन्दिर के निर्माण का विवरण उत्कीर्ण किया गया है। इसमें उल्लिखित मन्दिर सप्तमातृकाओं की मूर्ति सहित यही देवकुलिका, जिसके ऊपर यह उत्कीर्ण है, होना चाहिए; अन्य कोई नहीं। ___ इसके अतिरिक्त इस घाटी की अन्य देव-कुलिकाओं में चतुर्भुज विष्णु, सूर्य, महिषासुरमर्दिनी तथा एकमुख शिव की मनोहर मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। इस घाटी में दो अभिलेख और भी उत्कीर्ण हैं। पहले में चन्देरी के बुन्देला राजाओं का उल्लेख है। यह संवत् 1789 में उत्कीर्ण कराया गया था। इसी समय का एक अभिलेख सिद्ध की गुफा में भी मिलता है। दूसरा अभिलेख दो पंक्तियों 1. इनके लक्षण तथा विस्तार के लिए दे.-भुवनदेवाचार्य, अपराजितपृच्छा (बड़ौदा 1950), पृ. 574-575। 84 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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