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फुट 8 इंच ऊंचाई पर 1 फीट 3 इंच x 1 फुट 3 इंच x 2 फुट 4 इंच का एक शिलापट्ट समाविष्ट है। इसमें सामने की ओर एक चतुष्कोण देवकुलिका में सप्तफणावलि सहित पार्श्वनाथ कायोत्सर्गासन में उत्कीर्ण हैं, उनकी पादपीठ के दोनों
ओर दो-दो आकृतियाँ प्रदर्शित हैं, वे प्रायः खण्डित हैं। उनके ऊपर पद्मासन में एक तीर्थकर मूर्ति अंकित है। इस मूर्ति के दोनों ओर चँवर-ढोरती हुई एक-एक आकृति उपस्थित दिखाई गयी है।।
शिलापट्ट के भीतर की ओर की देवकुलिका में अंकित दृश्य बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उसमें एक यक्ष-युगल का अंकन है, जिसके पृष्ठ भाग में एक कमलनाल या ऐसी ही किसी वस्तु पर स्थित चतुष्कोण आसन पर एक तीर्थंकर पद्मासन में अवस्थित हैं।
यक्ष ललितासन (राजलीलासन) में स्थित है, उसके बायें हाथ में एक शिशु है जो उसके बायें पैर पर बैठा हुआ दिखाया गया है, दायें हाथ में कोई फल या मातुलिंग है। उसकी मेखला का अंकन सूक्ष्म बन पड़ा है, यज्ञोपवीत स्पष्ट दीख रहा है, परन्तु उसके साथ ही दूसरी ओर आधी ऊँचाई पर ही लटकने वाली दूसरी लड़ी उसके यज्ञोपवीत होने में सन्देह पैदा कर देती है। इसके कर्णकुण्डल और गलहार अत्यन्त सुन्दर बन पड़े हैं। केश-विन्यास जटा-जूट का आभास देता है।
ललितासन में अवस्थित यक्षी के पैरों में पैजनी स्पष्ट देखी जा सकती है। इसके भी दायें हाथ में एक शिशु है जो दायें पैर पर बैठा है, यह शिशु अपने बायें हाथ से अपनी माँ के बायें स्तन को छू रहा है। यह शिशु यक्ष के हाथ में स्थित शिशु की अपेक्षा बड़ा है। यक्षी के दायें हाथ में भी मातुलिंग है। इसकी मेखला अत्यन्त सूक्ष्मता से अंकित की गयी है, त्रिवली में से एक वलि स्पष्ट देखी जा सकती है, नाभि की गहराई और कटि की क्षीणता भी उल्लेखनीय है। पयोधरों का उभार खजुराहो की कला का स्मरण दिलाता है। मोहनमाला और गले के अन्य आभूषण बहुत सुन्दरता से अंकित हुए हैं। कर्णाभरण भी सुन्दर बन पड़े हैं। मस्तक की जटाएँ अपनी विशेषता रखती हैं, जिन्हें ऊपर की ओर सँभालकर दो जूटों में लपेटा गया है। इसमें सन्देह नहीं कि यह अंकन समय की दृष्टि से 10वीं शती से पहले नहीं जा सकता।
तीर्थंकर की मूर्ति के दोनों ओर चार-चार बड़े पत्तों का अलंकरण है। आकार की दृष्टि से इन्हें सर्प के फण नहीं कहा जा सकता। ऊपर दो छत्र दिखाई देते हैं।
इस देवकुलिका के नीचे भी कोई एक या अधिक मानवाकृति रही है, जो वर्तमान में प्लास्टर से दबी होने से देखी नहीं जा सकती।
स्मारक:: 83
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