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थी, जो अव बहकर आयी मिट्टी आदि से भर गयी है। वहाँ बहुत-सी अनगढ़ मूर्तियाँ मौजूद हैं, जो शिल्पकार द्वारा किसी कारणवश अर्ध-निर्मित स्थिति में ही छोड़ दी गयी होंगी।
___एक-पत्थर-की बावड़ी के निकट, तालाब के किनारे और ग्राम के आसपास भी महत्त्वपूर्ण पुरातत्त्व सामग्री बिखरी पड़ी है।
देवगढ़ से अन्यत्र ले जायी गयी सामग्री में भी कुछ के महत्त्वपूर्ण होने की सम्भावना है।
द्वार
(अ) कुंजद्वार
__पर्वत की परिधि को आवृत करनेवाले प्राचीन दुर्ग कोट का प्रमुख-द्वार 'कुंज-द्वार' कहलाता है। यह पर्वत शिखर के पश्चिम की ओर स्थित है। वर्तमान में यह जीर्ण-शीर्ण स्थिति में है। यह 19 फुट ऊँचा और 10 फुट 6 इंच चौड़ा है। इसके दोनों पार्यों में प्रस्तर-निर्मित दो चौकियाँ हैं, तथा दुर्ग में प्रवेश करने हेतु 1 फुट 9 इंच चौड़ी तीन सीढ़ियाँ निर्मित हैं।
इस द्वार के दोनों ओर 15 फुट चौड़ा प्राचीन दुर्ग का प्रथम प्राचीर है। द्वार के सामने अन्दर की ओर ध्वस्त-स्थिति में विद्यमान कुछ दुमंजिले निवासगृह आज भी देखे जा सकते हैं। इन निवासगृहों के द्वार अपेक्षाकृत छोटे हैं। कुंज-द्वार तथा उससे संयुक्त निवासगृहों में पहुँचने हेत् सोपान-मार्ग की व्यवस्था है।
इस द्वार का तोरण अतिशय कलापूर्ण है। प्रतीत होता है कि मूल-तोरण के नष्ट होने पर मुगलकाल में इसके तोरण का पुनर्निर्माण हुआ था।
मुख्य सड़क छोड़कर मन्दिरों तक पहुँचने के लिए इसी द्वार में से होकर जाना पड़ता है। अभी कुछ समय पूर्व क्षेत्र और शासन के सहयोग से मुख्य सड़क और मन्दिरों के बीच एक पक्का मार्ग निर्मित किया गया है। यह मार्ग इस द्वार में से न जाकर उसके दक्षिण में लगभग 100 गज की दूरी से गया है। इस मार्ग के निर्माण से जहाँ अनेक लाभ हुए हैं वहाँ एक हानि भी हुई है कि दुर्ग के अन्य द्वारों की भाँति यह द्वार भी उपेक्षित हो जाएगा।
(ब) हाथी दरवाजा
देवगढ़ दुर्ग की प्रथम प्राचीर में पूर्व की ओर एक विशाल द्वार है, जिसे
स्मारक:: 81
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