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________________ के कटाव के मध्य कीर्तिमुखों से । फुट 6 इंच लम्बी घण्टिकाएं लटक रही हैं। कीर्तिमुखों के ऊपर चतुर्दिक एक-एक तीर्थंकर (पद्मासन में) देवकलिकाओं में उत्कीर्ण हैं। मन्दिर संख्या 26, 28 व 30 के मध्य अवस्थित स्तम्भ स्तम्भ संख्या 19 माप सतह से चौकी की ऊँचाई 1 फुट चौकी से स्तम्भ की ऊँचाई 4 फुट 8 इंच स्तम्भ चतुष्कोण विवरण इस स्तम्भ' के निम्न भाग में देवकुलिकाओं में धरणेन्द्र-पद्मावती, अम्बिका आदि यक्ष-यक्षियाँ प्रदर्शित हैं। इसके पश्चात् चार-चार की पाँच पंक्तियों में प्रत्येक ओर तीर्थंकर मूर्तियाँ पद्मासन में उत्कीर्ण हैं और छठी पंक्ति में चार कायोत्सर्गासन तीर्थंकर अंकित हैं। 4 x 5 = 20 + 4 = 21 इस प्रकार प्रत्येक ओर चौबीसी का अंकन है। इस स्तम्भ का ऊपरी भाग खण्डित प्रतीत होता है। (द) प्रकीर्ण सामग्री मन्दिरों, लघु-मन्दिरों, मानस्तम्भों आदि अचल और मूर्तियों आदि चल सामग्री के अतिरिक्त देवगढ़ में प्रकीर्ण सामग्री भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है। मन्दिरों के विभिन्न पाषाण-खण्ड और खण्डित मूर्तियाँ अधित्यका और उपत्यका पर सर्वत्र बिखरी पड़ी हैं। उनमें कुछ ऐसी सामग्री भी यदा-कदा दिख जाती है, जो कला और संस्कृति की दृष्टि से पर्याप्त महत्त्वपूर्ण होती हैं। अपने अनुसन्धान काल में, मुझे अधित्यका पर एक ऐसा स्थान मिला है, जहाँ बैठकर शिल्पकार मूर्तियाँ आदि गढ़ते थे। इस स्थान के निकट पत्थरों की एक खदान 1. मं. सं. 28 के चित्र (संख्या 32) में दायीं ओर देखा जा सकता है। 80 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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