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छह शिलापट्ट स्थित हैं। इनमें से एक (संवत् 1201 अभिलिखित) चौवीसी और दूसरा किसी विशाल मूर्ति के अलंकरण का अंश, महत्त्वपूर्ण हैं। चौवीसी के पृष्ट भाग में, एक शिलापट्ट पर मात्र भामण्डल और सिंहासन शेष हैं। अनुमान है कि इसकी मूर्ति किसी मूर्तिभंजक द्वारा काट ली गयी है।
मन्दिर संख्या 30
माप अधिष्ठान की लम्बाई (पू.-प.) 24 फुट 4 इंच अधिष्ठान की चौड़ाई (उ.-द.) 15 फुट 10 इंच अधिष्ठान-समतल अधिष्ठान से छत की ऊँचाई 10 फुट 3 इंच विवरण
यह पश्चिमाभिमुख मन्दिर' आठ स्तम्भों पर आधारित है और उसका मण्डप 6 फुट 9 इंच चौड़ा और 9 फुट 5 इंच लम्बा है। इसका प्रवेश-द्वार सामान्य रूप से अलंकृत है और उसके सिरदल पर तीन तीर्थंकर मूर्तियों का अंकन है। इसके गर्भगृह में मध्यवर्ती दो स्तम्भों के अतिरिक्त शेष आठ स्तम्भ दीवारों में चिने हाए हैं। इसमें तीन वेदियाँ हैं पर मूल-मूर्ति एक भी नहीं है।
गर्भगृह में 12 शिलापट्ट विद्यमान हैं। इनमें से तीन अभिलिखित हैं। श्री साहनी ने इस मन्दिर में 4 फुट 5 इंच की एक कायोत्सर्गासन मूर्ति के सिंहासन पर एक अभिलेख की सूचना दी है। वह लेख यहाँ सिंहासन पर स्थित एक मूर्तिविहीन सिंहासन पर अंकित है। इस मन्दिर में शय्या पर लेटी 'जिन-माता' का अंकन बहुत भव्य है।
मन्दिर संख्या 31
माप अधिष्ठान की लम्बाई (पू.-प.) 14 फुट अधिष्ठान की चौड़ाई (उ.-द.) 12 फुट 9 इंच अधिष्ठान-समतल अधिष्ठान से छत की ऊँचाई 9 फुट
1. दे. -चित्र संख्या 34 । 2. एन. प्रो. रि. 1917-18, पृ. 20 !
64 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
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