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________________ विवरण पूर्णभद्र शैली में निर्मित दक्षिणाभिमुख इस मन्दिर" का अर्धमण्डप वर्तमान में छायाहीन अवस्था में है। उसके सामने के दो स्तम्भों के चिह्नों से और मण्डप की छत से इसकी छत के जुड़े होने के स्पष्ट प्रमाणों से निश्चित है कि इसपर छाया थी । मण्डप का प्रवेश द्वार अलंकृत है । ' मण्डप का आकार बहुत छोटा है और उसमें प्रवेश करते ही हम तुरन्त गर्भगृह के साधारण-से द्वार में पहुँचते हैं। गर्भगृह 1 फुट 10 इंच गहरा है, जिसमें दो सीढ़ियों द्वारा उतरा जाता है । इसमें सात शिलापट्ट विद्यमान हैं, जिनमें से दो पर पद्मासन और शेष पर कायोत्सर्गासन तीर्थकर मूर्तियों का अंकन है और तीन अभिलिखित हैं । मुख्य शिखर अधिष्ठान से प्रारम्भ होता है और लगभग 16 फुट तक कम और उसके ऊपर अधिकाधिक पतला होता जाता है । दक्षिण में ( प्रवेश द्वार के ऊपर) एक अंगशिखर है जिसपर सुन्दर अलंकरण एवं परिकर के मध्य तीर्थंकर मूर्तियाँ जड़ी हैं । इसकी एक देवकुलिका का तोरण और मुख्य मूर्ति टूटकर गिर गयी थी । जीर्णोद्धार के समय दूसरी मूर्ति तो वहाँ स्थापित कर दी गयी है, परन्तु तोरण आज भी अनुपस्थित है । मन्दिर संख्या 29 माप मन्दिर की लम्बाई ( पू. - प. ) मन्दिर की चौड़ाई (उ. - द.) अधिष्ठान-समतल अधिष्ठान से छत की ऊँचाई 7 फुट विवरण 12 फुट 3 इंच 12 फुट सामान्य अलंकरण और सिरदल पर तीन तीर्थकर मूर्तियों के अंकन से युक्त प्रवेश द्वारवाले इस पश्चिमाभिमुख मन्दिर में एकमात्र लघु कक्ष है। इसकी वेदी पर 1. इसके लक्षण विस्तार के लिए दे. अपराजितपृच्छा ( बड़ौदा, 1950 ई.), 164-10। 2. दे. चित्र संख्या 32 | 3. इस मन्दिर के स्थिति-विस्तार आदि के लिए दे. - विन्यास रूपरेखा, चित्र क्र. 42 । 4. दे. चित्र संख्या 33 | 5. दे. चित्र संख्या 32 | Jain Education International For Private & Personal Use Only स्मारक :: 63 www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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