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पूर्वी गर्भगृह में बाहर की ओर द्वार पर गंगा-यमुना एवं भीतर एक विशाल पद्मासन और उसके दोनों ओर एक-एक कायोत्सर्गासन तीर्थंकर मूर्तियाँ स्थित हैं।
इस गर्भगृह के भीतरी ओर जो बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ' की पद्मासन' मूर्ति स्थित है वह प्राचीन कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस मूर्ति के बायीं ओर पार्श्वनाथ की एक पद्मासन मूर्ति भी अवस्थित है। दक्षिणी गर्भगृह की बाहरी ओर दो कायोत्सर्गासन मूर्तियाँ हैं, जिनके मध्य अब एक लौह-द्वार है। अनुमान है कि इस द्वार के स्थान पर कोई मूर्ति रही होगी जो या तो नष्ट हो गयी या स्थानान्तरित कर दी गयी है। इस गर्भगृह के भीतर अनेक मूर्ति-खण्ड भरे पड़े हैं।
मन्दिर संख्या 16
माप अधिष्ठान की लम्बाई (उ.-द.) 49 फुट 4 इंच अधिष्ठान की चौड़ाई (पू.-प.) 29 फुट 10 इंच अधिष्ठान की ऊँचाई 1 फुट अधिष्ठान से अर्धमण्डप की छत की ऊँचाई 10 फुट 2 इंच अधिष्ठान से महामण्डप की छत की ऊँचाई ।। फुट महामण्डप की छत से गुमटी के छत की ऊँचाई 7 फुट गुमटी की छत से शिखर की ऊँचाई 8 फुट 8 इंच गुमटी की परिधि 16 फुट 5 इंच विवरण
चार अलंकृत स्तम्भों पर आधारित मण्डप और छह-छह स्तम्भों की तीन पंक्तियों पर आधारित एक लम्बे महामण्डप से युक्त यह पश्चिमाभिमुख मन्दिर अपने मूल रूप में नहीं रह सका है। ऊँची साधारण-सी गुमटीवाला इसका मण्डप देवगढ़ के स्थापत्य में विशेष कहा जा सकता है। द्वार का तोरण अलंकृत है।
महामण्डप के बाहरी 14 स्तम्भों को दीवार में चिन दिया गया है, अतः इसके मध्य केवल चार स्तम्भ ही बच रहे हैं।
महामण्डप में 25 विशालाकार शिलापट्टों में से आठ पर पद्मासन तथा 16 पर कायोत्सर्गासन तीर्थंकरों की तथा एक पर अम्बिका की मूर्तियाँ अंकित हैं।
1. चित्र सं. 54 2. यह मूर्ति नेमिनाथ की ही है, महावीर की नहीं, विस्तार के लिए दे. -पृ. 158-5) | 3. दे.-चित्र संख्या 271
54 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
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