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पर आते हैं। तव छह-छह स्तम्भों की छह पंक्तियों पर आधारित एक भव्य महामण्डप में प्रवेश करते हैं, जिसके बायें मं. सं. 13 और मं. सं. 14 की दक्षिणी दीवारें स्थित हैं।
इन दीवारों और महामण्डप के बीच लगभग 3 फुट का जो अन्तर था, उसमें महामण्डप के फर्श से । फुट 6 इंच ऊँची और 42 फुट लम्बी वेदी बना दी गयी है और उसपर 20 शिलापट्ट स्थापित किये गये हैं। जिनमें से दो पर पद्मासन और शेष पर कायोत्सर्गासन तीर्थकर मूर्तियाँ अंकित हैं।
महामण्डप से अन्तराल में पहुँचा जाता है जिसके दायें-बायें एक-एक मढ़िया विद्यमान हैं। बायीं ओर की मढ़िया में विंशतिभुजी चक्रेश्वरी (चि. सं. 99) और दायीं
ओर पद्मावती (चित्र सं. 106) यक्षी की मूर्तियाँ थीं, जिन्हें अब वहाँ से धर्मशाला में स्थानान्तरित कर दिया गया है।
प्रदक्षिणा पथ में 51 शिलाफलक स्थापित हैं, जिनमें से छह पर पद्मासन और शेष पर कायोत्सर्गासन तीर्थंकरों की विशालाकार मूर्तियाँ अंकित हैं। इनमें से 15 अभिलिखित हैं।
अन्तराल से चार सीढ़ियों द्वारा उतरकर गर्भगृह में पहुँचा जाता है। इसमें एक विशालाकार कायोत्सर्गासन तीर्थंकर मूर्ति (चित्र सं. 51) है, जो यहाँ की मौलिक मूर्ति है। इसके अतिरिक्त प्रवेश-द्वार से सटी हुई दायें-बायें दो तथा विशालाकार मूर्ति के दोनों ओर एक-एक चंवरधारी की और उनके भी पश्चात् एक-एक अम्बिका की मूर्तियाँ विद्यमान हैं।
यह यहाँ का ऐतिहासिक और भव्य मन्दिर है। इसके महामण्डप में अठारह लिपियों और भाषाओं वाला 'ज्ञानशिला' नामक सुप्रसिद्ध अभिलेख प्राप्त हुआ है। इसी के अर्धमण्डप के एक स्तम्भ पर गुर्जर-प्रतिहारवंशी राजा भोज का समय और राज्यसीमा निर्धारित करनेवाला अभिलेख उत्कीर्ण है। इसके प्रवेशद्वार और शिखर अत्यन्त कलापूर्ण तथा भव्य हैं। इसके प्रदक्षिणा पथ की बहिर्भित्तियों पर जैन शासन-देवियों की सुन्दर और महत्त्वपूर्ण मूर्तियाँ अंकित हैं।
1. दे.-महामण्डप की विन्यास रूपरेखा, चित्र क्र.9 तथा चित्र संख्या 171 2. दे.-चित्र संख्या 17 । 3. दे.-चित्र संख्या 491 4. अभिलेख के लिए दे. --परिशिष्ट दो, अभिलेख क्र. एक। 5. दे.-चित्र संख्या 18 । 5. दे.--चित्र संख्या 21 और 25 । 7. दे.-चित्र 101, 102
स्मारक :: 51
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