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विवरण
यह मन्दिर' चार अठपहलू स्तम्भों पर आधारित साधारण-से गुमटीदार मण्डप के रूप में है । इसके पश्चिमी स्तम्भों पर भीतर की ओर बने दोनों खाँचों से अनुमान होता है कि यह इस ओर से बन्द रहा होगा । श्री वरयाजी ने इसका पर्याप्त जीर्णोद्धार कराया, परन्तु इसके मौलिक आकार पर पूर्ण ध्यान दिया ।
इसके मध्य में (उत्तर से दक्षिण) एक पंक्ति में तीन चतुष्कोण स्तम्भ स्थित हैं। इनमें से प्रत्येक की गुमटी खण्डित है । " जीर्णोद्धार के समय ये अस्त-व्यस्त स्थिति में थे, उन्हें उखाड़कर व्यवस्थित रूप से स्थापित करते समय दो के नीचे दो चतुष्कोण ताम्रपत्र भी प्राप्त हुए थे । यद्यपि वे जीर्ण-शीर्ण हो गये थे, परन्तु उन पर के कुछ बीजाक्षर स्पष्ट थे । कुछ से संवत् 1100 का आभास होता था । श्री बरयाजी के अनुसार उन्होंने इन दोनों ताम्रपत्रों को जीर्णोद्धार के समय ही पुनः उन्हीं स्तम्भों के नीचे स्थापित कर दिया ।
इन तीनों स्तम्भों के चारों ओर देवकुलिकाओं में तीर्थंकर, साधु, साध्वी और उदासीन श्रावकों की मूर्तियाँ अंकित हैं और कई अभिलेख उत्कीर्ण हैं ।
मंन्दिर संख्या 11
माप
मन्दिर की लम्बाई (उत्तर-दक्षिण) 40 फुट 4 इंच मन्दिर की चौड़ाई (पूर्व-पश्चिम ) 30 फुट
अधिष्ठान समतल एवं मन्दिराकार
अधिष्ठान से पहले खण्ड की ऊँचाई 8 फुट 1 इंच
पहले खण्ड की छत से दूसरे खण्ड की छत की ऊँचाई 9 फुट 3 इंच
ऊपर की गुमटी की ऊँचाई 3 फुट 9 इंच
ऊपर की गुमटी की परिधि 5 फुट 1 इंच
विवरण
यह उत्तराभिमुख मन्दिर पंचायतन शैली का पूर्वरूप प्रतीत होता है । मण्डप,
1. दे - चित्र संख्या 14 |
2. वही ।
3. वही ।
4. दे - चित्र संख्या 151
5. दे - इस मन्दिर की विन्यास रूपरेखा, चित्र क्र. 38 ।
48 :: देवगढ़ की जैन कला एक सांस्कृतिक अध्ययन
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