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________________ और शेप में दुहरी (एक के ऊपर एक ) देवकुलिकाओं में पद्मासन या कायोत्सर्गासन तीर्थंकरों, साधुओं और अम्बिका की प्रतिमाएँ और चरण अंकित हैं। पश्चिमोत्तर स्तम्भ के पश्चिम की ओर एक अस्पष्ट लेख उत्कीर्ण है । विवरण मन्दिर संख्या तीन के सामने 18 स्तम्भों पर आधारित इस दक्षिणाभिमुख मन्दिर' का कम से कम दो बार जीर्णोद्धार हुआ है, प्रथम बार बारहवीं शती में, जिसका संकेत प्रवेश द्वार के दायें पक्ष में उत्कीर्ण एक लेख में मिलता है और दूसरी बार लगभग 1917-18 में । 2 आगे को निकले हुए दो स्तम्भ मण्डप का निर्माण करते हैं, जिसके ऊपर चार स्तम्भों पर आधारित एक सादी गुमटी है । मण्डप के बाहर निकले हुए दोनों स्तम्भ असमान हैं । दायाँ स्तम्भ एक अतिरिक्त चौकी पर स्थित है । इस स्तम्भ की स्वयं की चौकी चतुष्कोण है और उसके चारों ओर विभिन्न देवियों का अंकन है । इसके ऊपर वह अष्टकोण हो जाता है । कोनों के चारों पहलुओं पर कीर्तिमुखों से झूमती हुई 1 फुट 3 इंच लम्बी साँकलों से लटक रही घण्टियाँ उत्कीर्ण हैं | खजुराहो के घण्टई मन्दिर के स्तम्भों से इनका काफी साम्य है । ऐसा साम्य यहाँ के और भी मन्दिरों में दिखाई पड़ता है । इस स्तम्भ के चतुष्कोण शीर्ष के चारों ओर तीर्थंकरों और उपाध्यायों की पद्मासन मूर्तियाँ अंकित है । दायाँ स्तम्भ एक सादी चतुष्कोण चौकी पर स्थित है उसकी स्वतः की कोई चौकी नहीं है। इसके चतुष्कोण शीर्ष के चारों ओर उपाध्याय और तीर्थंकरों का विविध आसनों में अंकन है 1 प्रवेश-द्वार का अलंकरण भव्य है । मन्दिर के 18 स्तम्भों में से दो स्तम्भ मण्डप के अन्तर्गत हैं, 12 को दीवार में चिन दिया गया है, जिन्हें भीतर से देखा जा सकता है और शेष चार मन्दिर के बीचोंबीच स्थित हैं । ये चारों स्तम्भ एक अतिरिक्त चतुष्कोण चौकी पर स्थित हैं । उनकी स्वयं की चौकी और शीर्ष चतुष्कोण और मध्य भाग अष्टकोण हैं। इनका साधारण अलंकरण इन्हें दीवार में चिने हुए 12 साधारण चतुष्कोण स्तम्भों से पृथक् करता है । दीवारों में भीतर की ओर विभिन्न मूर्तियाँ जड़ी हुई हैं। 1. दे. - चित्र संख्या चार । 2. मं. सं. 4 के दक्षिण-पश्चिमी कोने से एक विशाल वृक्ष का हटाया जाना विशेष रूप से कठिन कार्य था क्योंकि उसकी जड़ों ने भवन को पहले ही शोचनीय हानि पहुँचा दी थी और आगामी कुछ ही वर्षों में वे उसे निःसन्देह रूप से ध्वस्त कर सकती थीं ।' - दयाराम साहनी : ए. प्रो. रि, भाग 2 ( लाहौर, 1918), पृ. 91 Jain Education International For Private & Personal Use Only स्मारक :: 43 www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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