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मन्दिर संख्या 5 (सहस्रकूट चैत्यालय)
माप प्रथम अधिष्ठान समचतुष्कोण 18 फुट 2 इंच प्रथम अधिष्ठान की ऊँचाई 2 फुट 6 इंच। द्वितीय अधिष्ठान समचतुष्कोण 11 फुट 7 इंच द्वितीय अधिष्ठान की ऊँचाई (प्रथम अधिष्ठान से) 2 फुट 1 इंच प्रथम अधिष्ठान से शिखर के अधिष्ठान की ऊँचाई 12 फुट 4/इंच शिखर के अधिष्ठान से शिखर की प्रथम-मेखला 4 फुट 3 इंच शिखर के अधिष्ठान से शिखर की अनुमानित ऊँचाई 13 फुट विवरण
इस मन्दिर' का नाम 'सहस्रकूट चैत्यालय'' पूर्णतः सार्थक है। 'कूट' का अर्थ है पर्वत-शिखर, एक सहस्र चैत्यों (प्रतिमाओं) का आलय (स्थान) जहाँ हो, उसे 'सहस्रकूट चैत्यालय' नाम देना उचित ही है। वि. सं. 1503 में भी इसे सहस्रकूट चैत्यालय ही कहा जाता था जैसा कि इसके पूर्वी द्वार के भीतर की ओर ऊपर जड़े हुए एक शिलालेख की आठवीं पंक्ति से ज्ञात होता है। श्री कनिंघम ने किसी स्थानीय व्यक्ति के कहने से इसे 'लखपतली का मन्दिर' कहा है। यों यह नाम लाखों (अधिकता के लिए रूढ़) पुतलियों (प्रतिमाओं) का मन्दिर होने से सार्थक भी प्रतीत होता है।
यह मन्दिर पूर्वाभिमुख है, जैसा कि इसके शिखर की पहली मेखला में एक पुरुष और एक स्त्री के अंकन से स्पष्ट है। आजकल इसके पूर्वी द्वार को नहीं, प्रत्युत पश्चिमी द्वार को खुला रखा जाता है। दोनों द्वारों पर अत्यन्त उच्च कोटि का अलंकरण है। उत्तर और दक्षिण में द्वार की आकृति का कटाव है और उसमें एक-एक अत्यन्त सुन्दर कपाट की बनावट में शिलाफलक संयोजित किया गया है।"
1. दे.-चित्र संख्या, पाँच। 2. सहस्रकूट के लिए दे.-चित्र संख्या आठ। 3. कूट-पर्वत शृंग, दे.-(अ) तारानाथ भट्टाचार्य : वाचस्पत्यम्, तृतीय भाग (वारासणी, 1962), पृ.
2162 । (ब) 'कूटोऽस्त्री शिखरं शृंगम्' । अमरसिंह : अमरकोष (काण्ड 2, वर्ग 3, श्लोक 4; वाराणसी, 1957), पृ. 121 1 (स) चतुर्वेदी; द्वारका प्रसाद शर्मा : संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ,
इलाहाबाद, 1957, पृ. 343 ! 4. कनिंघम : ए. एस. आइ. आर., जिल्द 10, पृ. 104 । 5. दे.-चित्र संख्या, छह और सात। 6. दे.-चित्र संख्या पाँच।
44 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
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