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सादा मण्डप है, जिसका पुनर्निर्माण, श्री परमानन्द वरया के अनुसार और जैसा कि स्थिति के अध्ययन से स्पष्ट है, दो-तीन दशाब्दियों पूर्व हुआ था । मध्य के चार स्तम्भ इस मन्दिर के मौलिक अंश कहे जा सकते हैं, जबकि शेष चार या तो किसी अन्य मन्दिर के हैं या इसी मन्दिर के किसी अन्य स्थान के । स्तम्भों की प्रथम पंक्ति के मध्य भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा इसी तथा अन्य मन्दिरों की मूर्तियाँ अव्यवस्थित रूप में जड़ दी गयी हैं, जिनमें से अनेक उल्लेखनीय हैं
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मन्दिर संख्या 2
माप
अधिष्ठान की लम्बाई (पूर्व-पश्चिम ) 24 फुट 7 इंच अधिष्ठान की चौड़ाई (उत्तर - दक्षिण ) 23 फुट 2 इंच अधिष्ठान की ऊँचाई - समतल
मण्डप की चौड़ाई 7 फुट
अधिष्ठान से छत की ऊँचाई 8 फुट
गुमटी का अधिष्ठान समचतुष्कोण 8 फुट 4 इंच अधिष्ठान से गुमटी के आधार की ऊँचाई 7 फुट 10 इंच गुमटी की ( उसके आधार से ) ऊँचाई 7 फुट 6 इंच गुमटी की परिधि 17 फुट
विवरण
श्री कनिंघम ने इस मन्दिर का उल्लेख नहीं किया. कदाचित् जंगल से आच्छादित होने से उनकी दृष्टि इसकी ओर नहीं गयी। सादी बनावट और गर्भगृह आदि के अभाव से हम इसे गुप्त युग का मान सकते हैं। यह चार-चार स्तम्भों की चार पंक्तियों पर आधारित था परन्तु पूर्व के चारों स्तम्भ आज अदृश्य हैं, जिनमें से दो की चौकी आज भी विद्यमान है
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इन चारों स्तम्भों पर मण्डप रहा होगा, जिसकी सामग्री का उपयोग मन्दिर संख्या तीन के पूर्वी भाग में कर लिया गया है। बाहरी स्तम्भों का अन्तर शिलाखण्डों द्वारा बन्द है, अतः मन्दिर के मध्य में केवल दो स्तम्भ ही रह गये हैं, शेष 10 दीवार का अंग बन गये हैं ।
इस पूर्वाभिमुख मन्दिर के पश्चिम में भी एक द्वार है, जिसे एक पत्थर की जाली से बन्द कर दिया गया है। इस द्वार की उपयोगिता आज कुछ भी नहीं दीखती
1. दे. - चित्र संख्या दो ।
40) :: देवगढ़ की जैन कला एक सांस्कृतिक अध्ययन
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