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1181-(1.12.1 ई.) का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है, जिसमें माण्डू (मालवा) के सुल्तान होशंग गौरी (1405-32 ई.) का उल्लेख है। देवगढ़ पर चन्देलों के कुछ समय पश्चात् क्रमशः मुगलों, मराठों और अँगरेजों का अधिकार रहा।
8. वर्तमान रूप
देवगढ़ अब जिस रूप में है, उसका श्रेय मुख्यतः तीन व्यक्तियों को है। पहले स्व. श्री परमानन्द बरया हैं, जो करीब 40 वर्षों से अपना तन, मन और धन अर्पित करके इस क्षेत्र की सुरक्षा और सुव्यवस्था करते रहे। दूसरे श्री रामदयाल पुजारी हैं, जो आज भी क्षेत्र की सुचारु व्यवस्था में दत्तचित्त हैं। तीसरे श्री शिखरचन्द्र सिंघई हैं, जिनके मन्त्रित्व काल में यह क्षेत्र अनवरत प्रगति करता रहा।
I. मं. सं. 5 (सहस्रकूट जिनालय) के भीतर पूर्वी द्वार के ऊपर जड़ा हुआ।
पृष्ठभूमि :: 37
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