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________________ यहाँ भोजदेव के महासामन्त विष्णुदेव पचिन्द का शासन था। श्री कनिंघम के अनुसार यह भोजदेव वही है, जिसका उल्लेख ग्वालियर और पेहोवा (जिला करनाल, पंजाब) के अभिलेखों तथा राजतरंगिणी' में मिलता है। उनके अनुसार वरही के ताम्रपत्र में अभिलिखित वंशावली वाला भोजदेव भी यही है, जिसका शासन समूचे उत्तर-भारत पर विस्तृत था।' धीरे-धीरे खजुराहो के चन्देले, ग्वालियर के कच्छपघात, धारा के परमार, मध्यभारत के कलचुरि और गुजरात के सोलंकी आदि स्वतन्त्र हो गये, और गुर्जर-प्रतिहारों का साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया।' 6. चन्देल शासन देवगढ़ पर चन्देलों का शासन दीर्घकाल तक रहा। यहाँ उस समय मूर्तियों, स्तम्भों तथा कुछ मन्दिरों के निर्माण के रूप में धार्मिक प्रवृत्तियाँ ही तीव्रतर नहीं हुईं बल्कि गिरि-दुर्ग के निर्माण के रूप में राजनीतिक गतिविधि भी तीव्र हो उठी। यहाँ कीर्तिवर्मन् का एक शिलालेख भी प्राप्त हुआ है। 7. मुगल, मराठा और अँगरेजी शासन इसके पश्चात् देवगढ़ के इतिहास को जानने के साधन नगण्य हैं। इधर संवत् आदि : एड. हि. इं., पृ. 169। (इ) डॉ. मजूमदार आदि : भा. वृ. इ., पृ. 18. । (ई) गो. ला. तिवारी : बु. इ., पृ. 33 और 49 । 1. मं.सं. 12 के अर्धमण्डप में दक्षिण-पूर्वी स्तम्भ पर उत्कीर्ण। अभिलेख पाठ के लिए दे.-परिशिष्ट दो, अभिलेख क्रमांक एक तथा एपीग्राफिया इण्डिका, भाग 4, पृ. 309 एवं भाग 5, पृ. ।। 2. दे.-ए. एस. आइ., जिल्द 10, पृ. 101 । (अ) ग्वालियर अभिलेख (सं. 933) के लिए दे --- एपीग्राफिया इण्डिका, भाग 18, पृ. 99-11+ । (व) एनुअल रिपोर्ट, ए. एस. आइ., 1903-4 ई., पृ. 277-851 3. पेहोवा अभिलेख (882 ई.) के लिए दे.-एपीग्राफिया इण्डिका, भाग एक, पृ. 181-90 । 4. इसकी रचना महाकवि कल्हण ने 12वीं शती के पूर्वार्ध में की। इसके विस्तृत परिचय के लिए दे. __--डॉ. रामजी उपाध्याय : संस्कृत साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास (इलाहावाद, 2018 वि.), पृ. 86-881 5. वरह के ताम्रपत्र (बरह कापर प्लेट) के लिए दे.- एपीग्राफिया इण्डिका, भाग 1), पृ. 15-19 | 6. ए. कनिंघम : ए. एस. आइ., जिल्द 10, पृ. 102 । 7. विस्तार के लिए दे.--डॉ. रा. ब. पाण्डेय : प्रा. भा., पृ. 305-31:। 8. यहाँ की राजघाटी में उत्कीर्ण । अभिलेख पाट के लिए दे. परिशिष्ट दो, अभिलेख क्रमांक दो। 9. यह अभिलेख एपीग्राफिया इण्डिका, भाग 5, पृ. 76 एवं कनिंघम के ए.एस.आर., जिल्द 18. पृ. 237-39 पर प्रकाशित है। 36 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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