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________________ अस्तित्व' में कोई सन्देह नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसके समीप गुजर्रा (जिला दतिया) नामक स्थान पर अशोक का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है। और यहाँ एक शिलालेख भी प्राप्त हुआ है, जिसकी शैली और लिपि' अशोक के शिला-प्रज्ञापनों से बहुत कुछ मिलती-जुलती है। 2. शुंग-सातवाहन काल मौर्यों के पतन के बाद शुंगों के शासन काल में उत्तर भारत का अधिकांश पुष्यमित्र तथा उसके वंशजों के अधिकार में रहा। फिर कुषाणों का अधिकार उत्तर भारत पर हुआ। उन्होंने अपना केन्द्र मथुरा को बनाया, जो देवगढ़ से लगभग 150 मील उत्तर में है। उस समय इन दोनों स्थानों का व्यापारिक और राजनीतिक सम्बन्ध भी प्रारम्भ हो गया था जो, दूसरी-तीसरी शती ई. में, इस क्षेत्र के नागों के अधिकार में आ जाने पर काफी बढ़ गया। इस समय विदिशा से मथुरा जानेवाले राजमार्ग पर देवगढ़ को महत्त्वपूर्ण विश्रामस्थान माना जाता था। विदिशा से एक दूसरा मार्ग देवगढ़ होता हुआ काशी की ओर जाता था। 1. (अ) डॉ. राजबली पाण्डेय : वही, पृ. 134 । (ब) डॉ. विमलचन्द्र पाण्डेय : वही, पृ. 411 । (स) डॉ. आर. सी. मजूमदार आदि : वही, पृ. 102-104 । (द) गोरेलाल तिवारी : वही, पृ. 10-11। ". (अ) डॉ. राधाकुमुद मुकर्जी : प्राचीन भारत (दिल्ली, 1964 ई.), पृ. 62। (व) प्रो. कृष्णदत्त वाजपेयी : म. प्र. का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अनुशीलन : सागर विश्वविद्यालय पुरातत्त्व-पत्रिका (1967 ई.), पृ. 80। 3. दयाराम साहनी : ए. प्रो. रि., 1917-18, पृ. 10। १. (क) डॉ. राजवली पाण्डेय : वही, पृ. 179-73 और 185 । (ख) डॉ. आर. सी. मजूमदार आदि : वही, पृ. 11.1। (ग) गोरेलाल तिवारी : वही, पृ. 1।। 5. (क) डॉ. रा. व. पाण्डेय : वही, पृ. 209 तथा 220 । (ख) डॉ. रा. कु. मु. : वही, पृ. 86 । (ग) डॉ. र. शं. त्रिपाठी : वही, पृ. 173 । (च) डॉ. आर. सी. मजूमदार आदि : वही, पृ. 121-22। (ङ) गो. ला. तिवारी : वही, पृ. 171 6. (क) डॉ. रा. ब. पाण्डेय : वही, पृ. 210-11 तथा 214। (ख) डॉ. रा. कु. मु. : वही, पृ. 85-87। (ग) डॉ. र. शं. त्रिपाठी, वही, पृ. 178-79 1 (घ) डॉ. रमेशचन्द्र मजूमदार आदि : भारत का बृहत् इतिहास, प्रथम भाग (प्राचीन भारत), (कलकत्ता, 1964 ई.), पृ. 231 । 7. (क) डॉ. रा. व. पाण्डेय : वही, पृ. 221 । (ख) डॉ. आर. सी. मजूमदार आदि : एड. हि. ई., पृ. 122। 8. पं. माधवस्वरूप वत्स : मेम्बायर्स ऑफ द ए. एस. आइ. संख्या 70 (द गुप्ता टेम्पल एट देवगढ़), पृ. 11 पृष्ठभूमि :: 33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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