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आत्म-साक्षात्कार किया, जिसके प्रमाण हैं उनकी अनेक समाधियाँ, मूर्तियाँ, चरणपादुकाएँ और अभिलेख तथा वे मन्दिर जिन्हें उनके आकार-प्रकार के कारण साधुओं का निवास माना जाना चाहिए (देखिए चित्र संख्या 2, 10, 12-14, 29)। इसीलिए मेरा विश्वास है कि यहाँ उपलब्ध सहस्रों देव-प्रतिमाओं और देवायतनों के कारण ही यह स्थान ‘देवगढ़' नाम से विख्यात हुआ है।
इतिहास 1. प्रागितिहास काल से मौर्ययुग तक
यहाँ प्रागितिहास-काल के उपकरण तो मिले ही हैं, तत्कालीन' आदिम मानव द्वारा बनाये गये चित्र भी विद्यमान हैं। यह 'चेदि' जनपद के दशार्ण नामक भाग के अन्तर्गत आता था। चेदिराज शिशुपाल यहाँ का शासक था।' निपधराज नल की पट्टराज्ञी दमयन्ती का नैहर भी यहीं बताया जाता है।
ई. पू. 7वीं शती में जब मगध-साम्राज्य की नींव पड़ी, तब देवगढ़ चेदि जनपद में ही था। नन्द वंश के अधिकार में प्रायः सम्पूर्ण उत्तर भारत था। इस समय तक देवगढ़ का न तो राजनीतिक महत्त्व था और न सांस्कृतिक। यहाँ मौर्य शासन के
1. मेरी इस मान्यता की पुष्टि पं. के. भुजवली शास्त्री के विचारों से भी होती है। दे....जेन सिद्धान्त
भास्कर : किरण 2, भाग 8 (आरा, 1911 ई.), पृ. 67 और आगे प्रकाशित 'मेरी दवगढ़ यात्रा' निबन्ध। 2. द्रप्टव्य --पृष्ट । की टिप्पणी संख्या ।। 3. दे.-पृष्ठ 2 की टिप्पणी संख्या 1 । 4. (अ) डॉ. राजवली पाण्डेय : प्राचीन भारत (वाराणसी, 1:162 ई.). पृ. 10 तथा 78 ! (व) डा. विमलचन्द्र पाण्डेय : प्राचीन भारत का राजनीतिक तथा सांस्कृतिक इतिहास (इलाहावाद. 106) ई.), पृ. 246। (स) गोरेलाल तिवारी : बुन्देलखण्ड का संक्षिप्त इतिहास (इलाहाबाद, संवत् 1990), पृ. 4 । (द) डॉ. आर. सी. मजूमदार, डॉ. एच. सी. रायचौधरी आदि : एन एडवांस्ड हिस्ट्री
ऑफ इण्डिया (लन्दन, 1960 ई.), पृ. 561 5. (अ) महाकवि माघ : शिशुपालवध महाकाव्य, सर्ग दो, पृ. 15-17। (व) डॉ. विमलचन्द्र पाण्डेय .
वही, पृ. 266 1 (स) डॉ. राजवली पाण्डेय, वही। (द) गोरेलाल तिवारी : वर्ग, पृ. 1,
और 31। 6. (अ) डॉ. राजवली पाण्डेय : वही, पृ. 110 1 (ब) डॉ. विमलचन्द्र पाण्डेय : वही, पृ. 353 । (स)
डॉ. आर. सी मजूमदार, डॉ. रायचौधरी आदि : वही, पृ 63 । (द) डॉ. रमाशंकर त्रिपाठी : प्राचीन भारत का इतिहास (दिल्ली, 1955 ई.), पृ. 85 । (इ) ग. ज्योतिप्रसाद जेन : 'भारतीय इतिहास एक दृष्टि (काशी, 1961 ई.), पृ. 72 ।
32 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
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