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________________ अपने यशस्वी ओर प्रतापी स्वामी' के नाम पर इस स्थान का नाम 'कीर्तिगिरि' रखा।' इसी से इस स्थान का नाम 'कीर्तिगिरि' प्रचलित हुआ। 3 देवगढ़ ____ अतः यह कहा जा सकता है कि इस स्थान का नाम 'देवगढ़' बारहवीं शताब्दी के अन्त या तेरहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में किसी समय रखा गया। श्री पूर्णचन्द्र मुखर्जी ने 'देवगढ़' नामकरण के सम्बन्ध में लिखा है कि “इस स्थान पर सन् 850 से 969 तक देववंश का शासन रहा, और इसी वंश के नाम पर यह स्थान ‘देवगढ़' कहलाया।" किन्तु श्री मुखर्जी का उपर्युक्त मत इतिहास-सम्मत नहीं है। यह सर्वविदित तथ्य है कि श्री मुखर्जी द्वारा निर्दिष्ट समय (850-969 ई.) में देवगढ़ गुर्जर !, कीर्तिवर्मा की प्रतापी वृत्ति का विवरण उसके समकालीन कवि श्रीकृष्ण मिश्र के अनुसार : नीताः क्षय क्षितिभुजो नृपतेर्विपक्षा, रक्षावती क्षितिरभूत् प्रथितैरमात्यैः । साम्राज्यमस्य विहितं क्षितिपालमौलि-मालाचित भवि पयोनिधि-मेखलायाम ।। __ --श्रीकृष्णमिथ, प्रवोधचन्द्रोदय नाटक (वाराणसी, 1955), पृ. 6। ". दे. --देवगढ़ दुर्ग के दक्षिण-पश्चिम में राजघाटी के किनारे कीर्तिवर्मा के मन्त्री वत्सराज द्वारा संवत् 115। (ईसवी 1097) में काव्यमय संस्कृत की 8 पंक्तियों में उत्कीर्ण अभिलेख1. नमः शिवाय। चान्दल्लवंशकमुदेन्दु विशालकीर्तिः ख्यातो वभूव नृपसंघनतांघ्रिपद्मः । ). विद्याधरो नरपतिः कमला-निवासो, जातस्ततो विजयपालनृपो नृपेन्द्रः ।। (1) तस्माद् धर्म पर श्रीमा.. . ...न कीांतवाम्म नृपो भवत् । यस्व कीर्तिसुधाशुभ्रे त्रैलोक्यं सौधतामगात् ।। (2) अगदं नूतन विमाविर्भूतमवाप्य । राम् । (नृपाब्धितरसमाका श्रारम्शयममार्जयत्) (3) राजोडुमध्यगतचन्द्रनिभस्य यस्य नूनं युधिष्ठिरसदाशिवराम च...... 5. ...न्द्रः । एते प्रसन्नगुणरत्ननिधा निविष्टा, यत्तद्गुणप्रकररत्नमये शरीरे । (4) तदीयामात्य-मन्त्रीन्द्रो रमणीपूर्वनिर्ग6. तः । वत्सराजेति विख्यातः श्रीमान् महीधरात्मजः।। (5) ख्यातो बभूव किल मन्त्रिपदैकमन्त्रे । वाचस्पतिस्त7. ...निमन्त्रगुणेरुभास्याम् याज्यं समस्तमपि मण्डलमाशु शत्रोराच्छिद्य कीर्तिगिरि-दुर्गमिदं व्यधत्त। (6) ६. श्रीवत्सराजघाटोऽयं नूनं तनाव कारित । ब्रह्माण्डमुज्ज्वलं कीर्तिमारोहवितुमात्मनः ॥ संवत् 115। चैत्रदि ) बुधौ। 3. पाट आन दी पपिक्विटीज न दी डिस्ट्रिक ऑव ललितपुर, भाग एक, डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन धार' विशेषांक (1956), पृ. 12 स उधृत । पृष्टभूमि :: 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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