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________________ 'दूसरा कोट' कहते हैं, इसी के मध्य वर्तमान 'जैन स्मारक' हैं। दूसरे कोट' के मध्य में भी एक छोटा-सा प्राचीर था, जिसके अवशेष आज भी विद्यमान हैं। इस प्राचीर के भी मध्य एक प्राचीरनुमा दीवार, दोनों ओर खण्डित मूर्तियाँ जड़कर बनायी गयी है। विशाल प्राचीर के दक्षिण-पश्चिम में ‘वराह-मन्दिर' और दक्षिण में बेतवा के किनारे नाहर-घाटी और राजघाटी हैं। नाम देवगढ़ में, इतिहास के अध्ययन के महत्त्वपूर्ण साधन लगभग 100 अभिलेख हैं। इनमें से अधिकांश में तिथियाँ अंकित हैं। इनमें शिल्प-साधना, प्रशस्तियाँ और स्मारकों के निर्माण की सूचनाएँ तो हैं ही, उनसे नागरी लिपि के क्रमिक विकास का ज्ञान भी होता है।' इनसे देवगढ़ के विभिन्न नामों की सूचना भी मिलती 1. लुअच्छगिरि इस स्थान का प्राचीन नाम 'लुअच्छगिरि' था। इस नाम का उल्लेख विक्रम संवत् 919 (862 ई.) के गुर्जर-प्रतिहार भोजदेव के शासनकालीन शिलालेख में है।' उस समय यह स्थान उसके शासन में था। स्पष्ट है कि 10वीं शती ईसवी तक इस स्थान की प्रसिद्धि 'लुअच्छगिरि' नाम से थी। 2. कीर्तिगिरि ग्यारहवीं शताब्दी के अन्त में चन्देल शासक कीर्तिवर्मा के मन्त्री वत्सराज ने इस स्थान पर एक नवीन दुर्ग का निर्माण कराया तथा शत्रुकुल का दलन करनेवाले 1. दयाराम साहनी : एनुअल प्रोग्रेस रिपोर्ट ऑव द सुपरिण्टेण्डेण्ट हिन्दू एण्ड बुद्धिस्ट मानुमेण्ट्स, नार्दर्न सर्किल, 1918, भाग 2 (लाहौर, 1918 ई.), पृ. 10। 2. दे.-मन्दिर संख्या 12 के महा-मण्डप के सामने अवस्थित अर्धमण्डप के दक्षिण-पूर्व के स्तम्भ पर उत्कीर्ण अभिलेख......महाराजाधिराजपरमेश्वरश्रीभोजदेवमही प्रवर्द्धमान-कल्याणविजय राज्ये तत्प्रदत्तपंचमहाशब्दमहासामन्तश्रीविष्णुरामपचिन्दराज्यमध्ये लुअच्छगिरि श्री शान्त्यायत(न)(स)निधे कमलदेवाचार्यशिष्येण श्रीदेवेन कारार्पितं इदं स्तम्भम्। संवत् 919 अस्वयुजशुक्लपक्षचतुर्दश्याम् बृहस्पति दिनेन उत्तराभाद्रपदानक्षत्रे, इदं स्तम्भ समाप्तमिति व.....अ गोगोकेन शुक-भातेन इदं स्तम्भ जटितमिति । शक कालाब्द सप्त सत्यानि चतुरसीत्यधिकानि 781।। 3. (अ) दे.-दी एज ऑफ इम्पीरियल कन्नौज, (भारतीय विद्या भवन, जिल्द 4), (बम्बई, 1951 ई.), पृ. 83 । (व) डॉ. आर. एस. त्रिपाठी : हिस्ट्री ऑफ कनीज (दिल्ली, 1950 ई ), प. 238 28 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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