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________________ श्री विश्वम्भरदास गार्गीय ने श्री साहनी की उक्त रिपोर्ट का हिन्दी अनुवाद किया। 2. ब्र. शीतलप्रसाद--1923 ई. में ब्र. शीतलप्रसाद ने अपनी पुस्तक 'संयुक्त प्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक'' में भी देवगढ़ का विवरण दिया। 3. श्री परमानन्द बरया-ललितपुर के एक तत्कालीन कर्मठ युवक स्व. श्री परमानन्द बरया ने देवगढ़ के जीर्णोद्धार आदि में गहरी दिलचस्पी लेना प्रारम्भ किया। उन्होंने शासन और समाज के सहयोग से इस क्षेत्र की दीर्घकाल तक जो सेवा की, वह तब तक नहीं भुलायी जा सकती जब तक देवगढ़ का अस्तित्व है। 4. भा. दि. जैन तीर्थ रक्षा समिति-श्री बरया के सतत प्रयत्न के फलस्वरूप सन् 1918 ई. में श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ रक्षा समिति ने इस क्षेत्र का प्रवन्ध अपने निर्देशन में ले लिया। 5. श्री देवगढ़ मैनेजिंग दि. जैन कमेटी-सन् 1930 में जाखलौन, ललितपुर आदि के जैनों ने एक समिति गठित करके इस क्षेत्र का प्रबन्ध उक्त समिति से अपने हाथ में लिया। इस संस्था ने जो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य किया, वह था भारत सरकार के पुरातत्त्व-विभाग से दिनांक 4/3/1935 को जैन स्मारकों के तथा वन विभाग से दिनांक 11/6/1938 को जैन स्मारकों के आसपास की भूमि की प्राप्ति । 6-7. श्री नाथूराम सिंघई, पं. जुगलकिशोर मुख्तार-सन् 1929 में श्री नाथूराम सिंघई ने एक लेख" इस क्षेत्र के सम्बन्ध में लिखा, जिस पर श्री जुगलकिशोर मुख्तार की महत्त्वपूर्ण सम्पादकीय टिप्पणी भी थी।' 8. पं. के. भुजबली शास्त्री-सन् 1941 में पं. के. भुजबली शास्त्री ने इस क्षेत्र की अपनी यात्रा का सचित्र विवरण प्रकाशित कराया। 1. यह विवरण देवगढ़ के जैन मन्दिर शीर्षक से 28 पृष्ठों में प्रकाशित हुआ है। 2. प्रकाशक- हीरालाल जैन, एम. ए., जैन होस्टल इलाहावाद, 1923 ई., देवगढ़ के विवरण के लिए दे.-पृ. 19-53। 3. इस समिति का नाम 'श्री देवगढ़ मैनेजिंग दिगम्बर जैन कमेटी' रखा गया और इसका पंजीयन, धारा 21, सन् 1860 के अन्तर्गत रजिस्ट्रार, ज्वाइण्ट स्टाक कम्पनीज, लखनऊ (उ. प्र.) द्वारा पंजीयन क्रमांक 26 द्वारा किया गया। 1. श्री देवगढ़ मेने. दि. जैन कमेटी के पास इकरारनामे की जो नकल है, उस पर पत्र संख्या आदि नहीं अंकित है, किन्तु दिनांक 4 मार्च 1935 अंकित है। 55. दे.- वन विभाग, नोटिफिकेशन क्र. मिसले. 702-14-395 दिनांक 21 जून 1938 इस नोटिफिकेशन के आधार पर दिनांक 4 अगस्त, 1938 को श्री देवगढ़ मैने. दि. जैन कमेटी को जैन मन्दिरों की सीमा हेतु लगभग 8.20 एकड़ भूमि वन विभाग द्वारा सौंपी गयी। 6. देवगढ़', अनेकान्त, वर्प 1, किरण ) (1986 विक्रमाव्द), पृ. 98-100 । 7. वही पृ. 101-103 । 5. जेन सिद्धान्त भास्कर, किरण ", भाग 8 (आरा, 1941), पृ. 67 और आगे। पृष्ठभूमि :: 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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