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6. सर जॉन मार्शल - भारत के पुरातात्त्विक सर्वेक्षण की 1914-15 की वार्षिक रिपोर्ट के प्रथम भाग में सर जॉन मार्शल ने इसका कुछ पंक्तियों में उल्लेख किया। सन् 1915 की 'वार्षिक प्रगति की रिपोर्ट' में यहाँ के सात शिलालेखों का विवरण प्रकाशित हुआ । '
7. श्री एच. हारग्रीव्ज़ - 1916 ई. की 'वार्षिक प्रगति की रिपोर्ट' में भी श्री एच. हराग्रीव्ज़ ने 13 शिलालेखों का सटिप्पण विवरण प्रकाशित किया । "
8. भारतीय पुरातत्त्व विभाग तथा रायबहादुर दयाराम साहनी - इसके पश्चात् एक नवम्बर, 1917 ई. को भारत सरकार के पुरातत्त्व विभाग ने इस क्षेत्र को अपने अधिकार में ले लिया और रायबहादुर दयाराम साहनी को वहाँ सर्वेक्षण के लिए भेजा। दिनांक 22/11/1917 से 17/12/1917 ई. तक उन्होंने सर्वेक्षण करके स्मारकों, मूर्तियों और सैकड़ों अभिलेखों का महत्त्वपूर्ण विवरण तैयार किया । " इन्होंने यहाँ के स्मारकों के जीर्णोद्धार के लिए प्रान्तीय और केन्द्रीय शासनों से कुछ राशि स्वीकृत करायी, परन्तु जंगल की सफाई और स्मारकों के प्रारम्भिक जीर्णोद्धार के अतिरिक्त अधिक कुछ न हो सका, क्योंकि जैसा कि सर जॉन मार्शल ने लिखा है, "इस जिले में अकाल पड़ जाने से कार्य को उस समय तक के लिए स्थगित कर देना पड़ा, जब तक कोई अनुकूल स्थिति न आए।
9. डी. बी. स्पूनर - इस बीच श्री डी. बी. स्पूनर ने भी 1917-18 की वार्षिक रिपोर्ट के प्रथम भाग में इसकी चर्चा की।
(2) सामाजिक प्रयत्न
1. श्री विश्वम्भरदास गार्गीय - 1922 ई. में ललितपुर के एक प्रधानाध्यापक
1. कलकत्ता से 1916 ई. में प्रकाशित, दे. - पृ. 27 1
2. दे. - परिशिष्ट 'इ', पृ. 8-9 1
3. दे. - पृ. 5 तथा परिशिष्ट 'ए' ।
4. शासन ने अपने नोटिफिकेशन क्र. 958- एम. - 367-47-111, दिनांक 10 सितम्बर, 1917 द्वारा देवगढ़ किले के जैन मन्दिरों को सन् 1904 के 'एशियेण्ट मानुमेण्ट्स प्रिजर्वेशन ऐक्ट सात' के अनुसार संरक्षित घोषित किया और नोटिफिकेशन क्र. 1162-एम.-367-47-111, दिनांक 1 नवम्बर, 1917 द्वारा अपने उक्त आदेश की सम्पुष्टि की। दे. - दयाराम साहनी : ए. प्रो. रि., 1920 ( लाहौर, 1921 ई.), परिशिष्ट 'फ', पृ. 14
5. दे. - ए. प्रो. रि., हि. बु. मा. ना. स., द्वितीय खण्ड, 1918 ( लाहौर, 1918), पृ. 5-101
6. सर जॉन मार्शल : आर्योलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, एनुअल रिपोर्ट 1919-20 ( कलकत्ता, 1922 ई.), पृ. 6 ।
7. डॉ. डी. बी. स्पूनर : आ. स. इ. ए. रि. 1917-18 प्रथम भाग (कलकत्ता, 1992), पृ. 7 और 321
24 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
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