SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धम-प्रधान होने के ज्वलन्त प्रमाण हैं। शिकार आदि के दृश्यों या उल्लेखों के अभाव से यहाँ के अहिंसामय वातावरण का अनुमान होता है। संक्षेप में, देवगढ़ राजनीतिक की अपेक्षा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व के लिए अधिक उल्लेखनीय है। इस दृष्टि से उसे साँची और भरहुत आदि की कोटि में रखा जाए तो उचित ही होगा। (स) देवगढ़ की कला के अध्ययन के प्रयत्न यह विचित्र लगता है कि इस महत्त्वपूर्ण कलाकेन्द्र का उल्लेख साहित्य में नगण्य रहा और अन्य स्रोत भी इस विषय में मौन हैं। देवगढ़ में उपलब्ध अभिलेख ही इसके विषय में कुछ प्रकाश डालते हैं। फिर भी विद्वानों का ध्यान इधर इसकी कला और संस्कृति के अध्ययन की ओर गया। देवगढ़ के अध्ययन के लिए विभिन्न स्तरों पर जो प्रयत्न हुए, उनका संक्षिप्त परिचय यहाँ दिया जा रहा है। (1) शासकीय प्रयत्न 1. अलेक्जेण्डर कनिंघम-देवगढ़ के पुरातात्त्विक महत्त्व पर सर्वप्रथम श्री अलेक्जेण्डर कनिंघम का ध्यान गया। उन्होंने भारत सरकार की ओर से 1874-75 और 1876-77 ई. में यहाँ का सर्वेक्षण किया। इसकी रिपोर्ट में उन्होंने दशावतार, शान्तिनाथ तथा कुछ अन्य मन्दिरों का संक्षिप्त विवरण प्रकाशित कराया। डाकुओं, जंगली जानवरों, जंगल की सघनता के बावजूद उन्होंने यहाँ का जो प्रामाणिक अध्ययन प्रस्तुत किया, वह आज भी उपयोगी है। 2. डॉ. ए. फुहरर-उनके पश्चात् डॉ. ए. फुहरर ने 1891 में यहाँ का विवरण' प्रकाशित कराया। इन्होंने श्री कनिंघम के कार्य को आगे बढ़ाया। 3. श्री पूर्णचन्द्र मुखर्जी-1899 ई. में श्री पूर्णचन्द्र मुखर्जी ने अपनी एक पुस्तक में देवगढ़ के स्मारकों का अच्छा परिचय दिया। 4-5इम्पीरियल तथा डिस्ट्रिक्ट गजेटियर-सन् 1908 में 'इम्पीरियल गजेटियर' ऑफ इण्डिया और 1909 ई. में 'झाँसी डिस्ट्रिक्ट गजेटियर' प्रकाशित हुए, जिनमें देवगढ़ का संक्षिप्त विवरण है। 1. दे.--ए. एस. आइ. आर., टूर्स इन बुन्देलखण्ड एण्ड मालवा इन 1874-75 खण्ड 1876-77 ई., जिल्द 10 (कलकत्ता, 1880 ई.), पृ. 100-1101 १. दे.-ए. एस. आइ. आर., दी मानुमेण्टल एण्टिक्विटीज़ एण्ड इंसक्रिप्शंस इन दी नार्थ वेस्टर्न प्राविंसेज़ एण्ड अवध (इलाहावाद, 1891 ई.), पृ. 119-121। ३. रिपोर्ट आन दी एण्टिक्विटीज़ इन दी डिस्ट्रिक्ट ऑफ़ ललितपुर, जिल्द पहली। 4. दे.-जिल्द ग्यारहवीं, पृ. 2.15 । पृष्ठभूमि :: 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy