SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भी हुआ है। अतः यह कहा जा सकता है कि अभिलिखित तीर्थंकरों की उपासना देवगढ़ में विशेष रूप से प्रचलित थी। सिद्धात्माओं के उल्लेख : यहाँ के एक अभिलेख (परि. दो, अभि. क्र. चार) में रामचन्द्र, सुग्रीव आदि सिद्धात्माओं का गुणस्मरण और अत्यन्त आदर के साथ उल्लेख हुआ है। अतः यह स्वीकार करना होगा कि देवगढ़ का समाज प्राचीन महापुरुषों का गुणस्मरण करता था तथा उसे पौराणिक कथाओं की अच्छी जानकारी थी। स्मारक और देव-देवियाँ : देवगढ़ के कुछ अभिलेखों में वहाँ के स्मारकों और देव-देवियों के उल्लेख भी प्राप्त होते हैं। उदाहरणार्थ-शान्त्यायतन (परि. दो, अभि. एक) श्री शान्तिनाथ चैत्यालय (परि. दो, अभि. पाँच), जिनालय एवं जैन-धर्मालय (परि. दो, अभि. चार), दानशाला (परि. एक, अभि. क्र. 125, 126, 129), चरणपादुका (परि. एक, अभि. क्र. 18, 41), राजपाल मठ (परि. एक, अभि. क्र. 99), आदि स्मारकों तथा चक्रेश्वरी (परि. एक, अभि. 58, 100), सुलोचना (चित्र 101), पद्मावती (परि. एक, अभि. 104), मालिनी (परि. एक, अभि. 102), सरस्वती (परि. एक, अभि. 103 तथा परि. दो, अभि. चार) आदि देवियों के अभिलेखन भी देवगढ़ के समाज की धार्मिक आस्था को सूचित करते हैं। 5. शिक्षा और साहित्य : यह विस्तारपूर्वक कहा जा चुका है कि देवगढ़ के प्राचीन समाज में शिक्षा पर अधिक बल दिया जाता था। यह तथ्य मूढंकनों, द्वारा तो प्रमाणित होता ही है, अभिलेखों द्वारा भी संपुष्ट होता है। उनमें अनेक स्थानों पर गुरु-शिष्य परम्परा उत्कीर्ण की गयी है। गुरुओं का स्मरण अत्यन्त श्रद्धा और भक्ति के साथ किया गया है। देव नाम के एक छात्र का उल्लेख हुआ है, जो अपने गुरु को नित्य प्रणाम करता था (प्रणमति नित्यं)। गुरु-शिष्य परम्परा महिलाओं में भी प्रचलित थी। सागरसिरि नामक महिला-गुरु की दो शिष्याओं (चेली), सालसिरि और उदयसिरि के नाम उत्कीर्ण हुए हैं। अध्ययन-अध्यापन विविध विषयों का होता था। एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि वहाँ समयसार जैसे अध्यात्मशास्त्र, ज्ञानार्णव-जैसे योगशास्त्र और यशस्तिलक चम्पू-जैसे काव्यग्रन्थों का पठन-पाठन होता था। 1. दे.-चित्र सं. 75 तथा 77 से 85 तक। 2. दे.-परि. दो, अभि. क्र. एक, तीन, चार, पाँच आदि । 3. दे.-वही। 4. दे.-परि. दो, अभि. क्र. तीन। 5. दे.-वही। 6. दे.-परि. दो, अभि. क्र. चार। 264 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy