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(परि. दो, अभि. चार), कीर्त्याचार्य (19), गणी (32), भावनन्दी (33), चन्द्रकीर्ति (39), माधवदेवचन्द्र' (85), नागसेनाचार्य (90), माघनन्दी (101), सहस्रकीर्ति' (124) आदि अनेक आचार्यों और भट्टारकों के धार्मिक-कृत्यों का कभी संक्षिप्त तो कभी विस्तृत वर्णन उत्कीर्ण हुआ है। साथ ही इन्दुआ (11 और 30) लवणश्री (107), नवासी (25), मदन (52), धर्मश्री (22) आदि आर्यिकाओं के सक्रिय धार्मिक सहयोग और जीवन की गाथाएँ भी अभिलिखित हैं।
तीर्थंकरों की उपासना : देवगढ़ में उपलब्ध सहस्रों तीर्थंकर मूर्तियों, उन पर उत्कीर्ण अभिलेखों तथा कुछ मूर्तियों के पादपीठ में विनीत भक्तों के अंकन के आधार पर वहाँ के समाज के धार्मिक जीवन और सुदृढ़ आस्था का परिचय सहज ही प्राप्त हो जाता है। इस सबके अतिरिक्त वहाँ के अभिलेखों में ऋषभ (17, 42-44, 52, 82 तथा परि. दो, अभि. चार), अजित (51, 61), सम्भव (60, 120), सुमति (1, 42-44), चन्द्रप्रभ (114-15, 119), शान्तिनाथ (42-44, 46, 106 तथा परि. दो, अभि. चार), मल्लि (117), पार्श्वनाथ (86, 87), तथा वर्धमान (42-44 एवं परि. दो, अभि. चार) आदि के नाम भी अंकित हैं। कुछ में तीर्थंकरों का स्तवन
1. भ., ले. 6221 2. (अ) जै. शि.सं. द्वि., अभि. क्र. 136 1 (ब) शो., सं. 20, पृ. 360 । 3. (अ) आ., पृ. 84, 133 । (ब) जै. प्र., पृ. 62, 83, 180। (स) जै. द्वि, पृ. 14, 56, 130। (द)
जै. शि. सं. द्वि., अभि. क्र. 212, 227, 239, 241, 280। (इ) जै. शि.सं. तृ., अभि. क्र. 545, 571, 600। (ई) वही च., 208, 367, 383, 402, 403, 405 । (उ) भ. ले. 204, 221, 222, 267, 286, 539, 540, 709, 724 आदि। (ऊ) रा., ले. 209, 594 । (ऋ) रा. जै. सं., पृ. 156,
159, 160, 167। 4. (अ) जै. शि. सं. द्वि., अभि. क्र. 145, 3011 (ब) वही तृ., 534, 568, 667। (स) वही
च., पृ. 154, 233-34, 242-43, 266, 268, 372 1 (द) आ., पृ. 124, 132, 147। (इ) जै. सा.
इ., पृ. 271-73, 3101 5. (अ) जै. शि. सं. प्र., भू., पृ. 14 तथा अभि. क्र. 112, 126, 150। (ब) वही द्वि., अभि. 45।
(स) वही च., प. 72, 84-85 । (द) आ., पृ. 129 । 6. (अ) जै. शि. सं. प्र., भू., पृ. 40, 41, 55, 105, 129, 130, 499 तथा अभि. क्र. 42, 100, 112,
124, 128-30, 132-34, 157, 159, 461 । (ब) वही, द्वि., अभि. क्र. 204, 267, 277, 280, 293, 300 । (स) वही तृ., अभि. क्र. 307-8, 313, 320, 334, 411, 465, 514, 524, 571, 667। (द) वही च., पृ. 22, 58, 60, 98, 150, 152, 166, 204, 207, 229, 258, 271-72 ।
(इ) आ., पृ. 22, 43-47, 124, 133 । 7. (अ) जै. शि. सं. च., पृ. 373, 379 । (ब) जै. सा. इ., पृ. 333-34, 341, 361, 398 । (स) अने.
(व. 15, कि. दो), पृ. 81 । 8. जै. शि. सं. तृ., अभि. क्र. 418। 9. दे..--(1) मं. सं. 10 में उत्कीर्ण अभिलेख (परि. एक, अभि. 42-44)। (2) परि. दो, अभि. चार
और पाँच।
अभिलेख :: 263
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