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________________ मालवों और नागों या उनके किन्हीं वंशजों की कृपा समान रूप से रही हो, जिसके फलस्वरूप यह मन्दिर (संख्या 22, दे.-चित्र संख्या 30) निर्मित हुआ हो। यह भो सम्भव है कि दोनों ने इस मन्दिर की रक्षा आदि के लिए कोई स्थायी व्यवस्था कर दी हो, जिसके प्रमाणस्वरूप यह लेख उत्कीर्ण कराया गया हो। 2. इतिहास की सामग्री : इतिहास के निर्माण में देवगढ़ में प्राप्त अभिलेखों का विशेष महत्त्व है। भोजदेव : यहाँ उपलब्ध तिथि सहित प्राचीनतम अभिलेख' गुर्जरप्रतिहार शासक भोजदेव का है। इसे आश्वयुज (आश्विन = क्वार) शुक्ल चतुर्दशी, विक्रम संवत् 919 और शक संवत् 784 तदनुसार 10 सितम्बर 862 ई., गुरुवार को उत्कीर्ण कराया गया था। इस स्तम्भलेख में जिस महाराजाधिराज परमेश्वर भोजदेव का उल्लेख है, वहीं ग्वालियर के संवत् 933 (876 ई.) के एक अभिलेख में भी उल्लिखित हुआ है। राजतरंगिणी में वर्णित 883 से 901 ई. तक के शंकरवर्मन् का समकालीन भोज भी यही था। पेहोवा अभिलेख' का प्रमुख पात्र भी यही भोजदेव था। इन अभिलेखों के अतिरिक्त अन्य प्रमाणों से भी ज्ञात होता है कि इस गुर्जरप्रतिहार शासक का शासन प्रायः सम्पूर्ण उत्तर भारत पर था। विष्णुराम पचिन्द : प्रस्तुत अभिलेख में महासामन्त विष्णुराम पचिन्द का भी उल्लेख हुआ है। इससे ज्ञात होता है कि भोज के शासन में सामन्त प्रथा थी, जो महाराजाधिराज परमेश्वर का विरुद दिया गया है वह इस दृष्टि से सर्वथा उपयुक्त राजपाल : दो अभिलेखों से किसी राजपाल का नाम ज्ञात होता है। संवत् 1121 में एक मन्दिर (संख्या 18, चित्र 18) का नाम 'राजपाल मठ' प्रचलित था। श्री साहनी इसका समीकरण नहीं कर सके थे। परन्तु जैसा कि डॉ. साँकलिया भी मानते हैं, यह गुर्जरप्रतिहार वंश के अन्तिम शासकों में से कोई होना चाहिए। उदयपालदेव : दो अभिलेखों में महासामन्त उदयपालदेव का नाम प्रयुक्त 1. दे.-परि. दो, अभि. क्र. एक। 2. दे.-ए.पी.ई., भाग 18, पृ. 99-114 तथा एनु. रि., ए.एस.आइ., 1903-4 ई., पृ. 277-85 । 3. कनिंघम : ए.एस.आइ., जिल्द 10, पृ. 101 । 4. दे.--ए.पी. इं. भाग एक, पृ. 18-4-90। 5. दे.-परि. एक, अभि. क्र. 99, 100 । 6. दे.-ए.पी.आर., 1918, पृ. 10। 7. दे.-बुलेटिन ऑफ़ दी डेक्कन कॉलेज रिसर्च इंस्टीट्यूट, जिल्द एक, सं. 2-4 (मार्च, 1940 ई.), पृ. 162। 8. दे.-परि. एक, अभि. क्र. 47, 48| अभिलेख :: 257 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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