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________________ लुअच्छगिरि' और गोपालगढ़ के उल्लेख हैं। इन सबका समीकरण प्रायः सर्वमान्य चन्देरीगढ़ : चन्देरीगढ़ गुना जिले में स्थित वर्तमान चन्देरी है, वहाँ का गढ़ आज भी विद्यमान है। देवगढ़ और चन्देरी का राजनीतिक ही नहीं, अपितु सांस्कृतिक सम्बन्ध भी रहा है। पालीगढ़ नगर : पालीगढ़ नगर झाँसी जिले में स्थित वर्तमान पाली होना चाहिए, जो देवगढ़ से पूर्व की ओर लगभग बारह मील पर स्थित है। लुअच्छगिरि : लुअच्छगिरि देवगढ़ के प्राचीन नामों में से एक है। गोपालगढ़ : गोपालगढ़ वर्तमान ग्वालियर होना चाहिए।' वेत्रवती : एक अभिलेख में वेत्रवती का उल्लेख है।' यह वेतवा नदी है, इसके किनारे देवगढ़ स्थित है। करनाटकी : एक शब्द करनाटकी भी प्राप्त हुआ है, सम्बद्ध अभिलेख की भाषा इतनी अशुद्ध संस्कृत है कि उससे इस सुपरिचित शब्द कर्णाटक (भूतपूर्व मैसूर राज्य, जिसे अब कर्नाटक ही कहा जाने लगा है) की व्याकरण सम्बन्धी स्थिति जानना कठिन है। यह ‘करनाटकी' शब्द यहाँ या तो लिपि के लिए आया है या किसी महिला के नाम या विशेषण के रूप में। इस शब्द के पूर्व 'देश' शब्द उत्कीर्ण है। अतः यह भी सम्भव है कि कर्णाटक को ही 'करनाटकी' लिखा गया हो। श्री-मालव-नाग-त्रात : इसी प्रकार एक पद 'श्रीमालवनागत्रात भी विचारणीय है। चूँकि सम्बद्ध अभिलेख में इस शब्द के अतिरिक्त और कोई शब्द ही नहीं है, अतः इसमें उत्कीर्ण ‘मालव' और 'नाग' शब्दों का समीकरण अनुमान से ही करना होगा। त्रात संस्कृत का विशेषणभूत कृदन्त (त्रै + क्त) शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'रक्षित' । अतः सम्पूर्ण शब्द का अर्थ हुआ मालव और नाग द्वारा रक्षित । यह अभिलेख मन्दिर संख्या 22 के द्वार तोरण पर उत्कीर्ण है। इस अभिलेख के सम्बन्ध में दूसरी अनुमिति इस प्रकार हो सकती है : चूंकि देवगढ़ मालवगण की सीमा में आता था और उसके तुरन्त समीप उत्तर-पूर्व में नाग-भारशिवों की सीमा प्रारम्भ हो जाती थी। अतः यह सम्भव है कि इस क्षेत्र पर 1. दे.-परि. एक, अभि., क्र. 88 तथा परि. दो, अभि. क्र. एक। 2. दे.--परि. दो, अभि. क्र. छह । 3. ग्वालियर के अभिलेखों में भी उसका उल्लेख गोपालगढ़ नाम से प्राप्त होता है। दे.-ग्वालियर का सं. 1510 में अभिलिखित महाराजाधिराज श्री दूंगरेन्द्रदेव का लेख-जे.ए.एस.बी., भाग 31, पृ. __404 और 423-24 | तथा वहीं का संवत् 1497 का एक अन्य अभिलेख। 4. दे.-परि. दो, अभि. क्र. चार । 5. दे....परि. दो, अभि. क्र. छह। 6. दे.-परि. एक, अभि. क्र. 121 । 256 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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