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________________ 3. लिपि, भाषा और तिथि : देवगढ़ के अभिलेखों में से कुछ ब्राह्मी लिपि में और शेष नागरी लिपि में उत्कीर्ण हुए हैं। 'ज्ञानशिला' नामक पूर्वोक्त अभिलेख में 18 लिपियों का प्रयोग हुआ माना जाता है। यहाँ के अभिलेखों में से कुछ संस्कृत, कुछ अपभ्रंश और कुछ हिन्दी भाषाओं में अंकित हुए हैं। कुछ की संस्कृत अशुद्ध है। इससे अनुमान होता है कि उस समय से ही संस्कृत के अशुद्ध रूप का प्रचलन प्रारम्भ हो गया था। कभी-कभी एक ही अभिलेख में एक से अधिक भाषाओं का भी प्रयोग मिलता है। कुछ अभिलेख विशुद्ध और उच्चकोटि की काव्यमय संस्कृत में उत्कीर्ण हुए हैं। यहाँ के अभिलेखों पर बुन्देलखण्ड की क्षेत्रीय भाषा और स्थानीय बोलियों का भी प्रभाव पड़ा है। __ जैन स्मारकों से सम्बन्धित तिथियुक्त अभिलेखों में से प्राचीनतम, संवत् 919 (862 ई.) और नवीनतम संवत् 1995° (1939 ई.) में उत्कीर्ण हुए हैं। (ब) आन्तरिक पक्ष देवगढ़ में प्राप्त अभिलेख बाह्य पक्ष की अपेक्षा आन्तरिक पक्ष में अधिक समृद्ध हैं। उनसे कुछ ऐसी सूचनाएँ प्राप्त होती हैं, जो भारतीय इतिहास के कुछ विवादास्पद पक्षों पर प्रकाश डालती हैं। ‘जैन साधु-संस्था' में तो इन अभिलेखों से अत्यन्त महत्त्वूपर्ण नाम और तिथियाँ जुड़ जाती हैं। इसके अतिरिक्त अन्य विषयों का परिज्ञान भी इनसे होता है। इन सबका अध्ययन यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। 1. भौगोलिक महत्त्व : यहाँ प्राप्त अभिलेखों में चन्देरीगढ़, पालीगढ़ नगर, 1. जैन धर्मशाला में इस लिपि में अंकित एक अभिलेख सुरक्षित है। नाहरघाटी में भी इस लिपि में अभिलेख उत्कीर्ण है। 2. दे.-चित्र सं. 491 3. परिशिष्ट एक। 4. दे. - (अ) मं. सं. 10 के स्तम्भों पर उत्कीर्ण स्तुतिकाव्य। (ब) जैन धर्मशाला में सुरक्षित सं. 1493 का अभिलेख तथा परि. दो, अभि. क्र. पाँच। (स) राष्ट्रीय संग्रहालय, देहली में सुरक्षित देवगढ़ का अभिलेख तथा परि. दो, अभि. क्र. चार । 5. दे..-मं. सं. 12 के अर्धमण्डप के दक्षिण-पूर्वी स्तम्भ पर उत्कीर्ण अभिलेख तथा परि. दो., अभि. क्र. एक। 6. दे.--सन् 1939 में, सिंघई भैयालाल गुरहा गजरथ के समय प्रतिष्ठापित मूर्तियों के अभिलेख एवं मं. सं. 11 के द्वितीय खण्ड के गर्भगृह तथा धर्मशाला-स्थित दि. जैन चैत्यालय में क्रमशः संगमरमर और पीतल की मूर्तियाँ । 7. दे.-परि. एक, अभि. क्र. 371 8. दे.-परि. एक, अभि. क्र. 4।। अभिलेख :: 255 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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