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इसी ( संख्या 12 ) मन्दिर का दूसरा अभिलेख, संवत् 1051 (994 ई.) एक द्वार के पुनर्निर्माण की सूचना देता है
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मं. सं. एक के पीछे की ओर स्थित एक स्तम्भ पर किसी कल्याण सिंह का नाम अंकित है, जिसने संवत् 1113 ( 1056 ई.) में उस स्तम्भ का निर्माण कराया था। मं. सं. 18 के सामने विद्यमान दो ( संख्या 15 और 16 ) में से एक मानस्तम्भ ( दायें, संख्या 15 ) पर उत्कीर्ण है कि संवत् 1121 (1064 ई.) में आचार्य यशस्कीर्ति ने राज्य - पाल मठ (मं. सं. 18 का नाम) के सामने दो स्तम्भ ( संख्या 15 और 16 ) निर्मित कराये थे । उपाध्याय परमेष्ठी की एक मूर्ति पर संवत् 1343 (1276 ई.) में उसके निर्माण का वर्णन है ।" यहाँ के एक अभिलेख, " जो अब राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली में सुरक्षित है, में बहुत विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है कि संवत् 1481 (1424 ई.) में एक भट्टारक ने शुभचन्द्र की आज्ञा से पद्मनन्दी और दमबसन्त की मूर्तियाँ समर्पित की थीं।
संवत् 1493 (1436 ई.) का एक अभिलेख' देवगढ़ की ही जैन धर्मशाला में सुरक्षित है, जिसमें उक्त शान्तिनाथ चैत्यालय के निर्माण का उल्लेख है। मं. सं. पाँच के संवत् 1503 (1446 ई.) के एक अभिलेख में उत्कीर्ण है कि शाह अलपखाँ के शासनकाल में इस मन्दिर का जीर्णोद्धार किया गया। इसमें शाह अलपखाँ का उल्लेख महाराजाधिराज आलम्भक के नाम से हुआ है ।
मं. सं. 7 विद्यमान चरणपादुका पर संवत् 1695 (1638 ई.) में उनके समर्पित किये जाने का वर्णन है ।" उसमें महाराजाधिराज उदयसिंह और उनकी दो रानियों के साथ पालीगढ़ का भी उल्लेख है I
4. अन्य : अन्य अभिलेखों में समय-समय पर तीर्थयात्रियों द्वारा विभिन्न स्थानों पर उत्कीर्ण किये गये लेख, 'प्रणमति नित्यं' आदि अपूर्ण वाक्य और मानचित्र" सम्मिलित हैं।
1. प्रवेश द्वार के दायें पक्ष पर उत्कीर्ण ।
2. दे. - परि. एक, अभि.क्र. 10।
3. दे. - परि. एक, अभि. क्र. 99 ।
4. सम्प्रति जैनधर्मशाला स्थित दि. जैन चैत्यालय में विद्यमान । दे. - चित्र सं. 83
5. दे. - परि. दो, अभि. क्र. तीन ।
6. दे. - परि. दो, अभि. क्र. चार ।
7. दे. - परि. दो, अभि. क्र. पाँच ।
8. भीतर की ओर पूर्वीद्वार के ऊपर जड़ा हुआ। दे. - परि. एक, अभि. क्र. 37 1
9. दे. - चित्र सं. 121
10. अभिलेख पाठ के लिए दे. - परि. दो, अभि. क्र. छह ।
11. दे. - मं. सं. 15 में स्थित त्रिलोक का मानचित्र ।
254 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
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