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________________ 1. दानसूचक : देवगढ़ में दानसूचक अभिलेख ही अधिकतर प्राप्त हुए हैं। ऐसे अभिलेख अत्यन्त संक्षिप्त हैं और कभी-कभी तो वे एक शब्द (दाता का नाम) तक ही सीमित होते हैं। उनमें दाता का नाम और उससे सम्बद्ध कुछ व्यक्तियों के नाम दिये जाते हैं, जिनसे तत्कालीन नामकरण की विधा पर प्रकाश भले ही पड़ता हो पर इतिहास आदि के क्षेत्र में कोई विशेष सहायता नहीं मिलती। 2. स्तुतिपरक : यहाँ कुछ ऐसे अभिलेख भी प्राप्त हुए हैं, जिन्हें स्तुतिपरक कहा जा सकता है। ऐसे अभिलेखों में मं. सं. 10 (चित्र 14) स्तम्भलेखों का उल्लेख सर्वप्रथम करना चाहिए। इस मन्दिर में तीन लघुस्तम्भों पर चारों ओर मध्यकालीन नागरी लिपि में उत्कीर्ण अभिलेखों में ऋषभनाथ, शान्तिनाथ, महावीर आदि तीर्थंकरों की स्तुति गायी गयी है। वे संस्कृत के सुन्दर पद्यों में लिखे गये हैं। अक्षर सुडौल हैं, पर कहीं-कहीं टूट गये हैं। इन स्तम्भों का पाषाण सफेद बलुआ है, जिससे उनपर अंकित अभिलेखों की स्थिति उत्तरोत्तर शोचनीय होती जा रही है। 3. स्मारक : यहाँ स्मारक अभिलेख बहुत हैं। दानसूचक अभिलेखों की भाँति कभी-कभी वे भी बहुत संक्षिप्त होते हैं। इनमें मन्दिरों के निर्माण की सूचना देनेवाले, एक अपवादस्वरूप लेख को छोड़कर कोई अभिलेख नहीं है। केवल एक अभिलेख में किसी शान्तिनाथ-चैत्यालय के निर्माण की सूचना है, किन्तु अब यह चैत्यालय पूर्णतया नष्ट हो चुका है। यह कदाचित् वही मन्दिर होगा, जिसके अवशेष हमने मं. सं. एक के पास खोज निकाले हैं। मं. सं. 5 के पीछे प्राप्त अवशेषों में भी इस मन्दिर का अस्तित्व माना जा सकता है। मन्दिरों के जीर्णोद्धार की सूचना देनेवाले कई अभिलेख मिले हैं। इनमें से मं. सं. 5 का एक और मं. सं. 12 के दो अभिलेख महत्त्वूपर्ण हैं। मं. सं. 12 का एक अभिलेख' संवत् 919 (862 ई.) का है। उसमें लिखा है कि परम भट्टारक महाराजाधिराज भोजदेव के महासामन्त विष्णुराम पचिन्द के राज्य में कमलदेवाचार्य के शिष्य श्रीदेव ने इस स्तम्भ का निर्माण कराया। यह स्तम्भ, जैसा कि कहा जा चुका है। पूर्ववर्ती स्तम्भ के नष्ट हो जाने पर स्थापित किया गया होगा। इसमें उल्लिखित नाम विशेष महत्त्व के हैं जिसपर आगे प्रकाश डाला जाएगा। 1. अव जैन धर्मशाला में प्रदर्शित । अभिलेख पाठ के लिए दे.-परि. दो, अभि. क्र. पाँच। 2. दे.--रेखाचित्र संख्या 37। 3. दे.-परि. एक, अभि. क्र. 37। 4. दे.-परि. दो, अभि. क्र. एक। दे.-अ. तीन में सम्बन्धित मन्दिर स्थापत्य का वर्णन। अभिलेख :: 253 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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