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________________ के आकार भिन्न-भिन्न हैं।' कानों में कुण्डल और कर्णफूल पहने जाते थे। हार और अर्धहार प्रायः वैसे ही होते थे,' जैसे खजुराहो में मिलते हैं। कुछ स्त्रियाँ कण्ठश्री (ठुसी) भी पहनती थीं, जिसका प्रचलन बुन्देलखण्ड में अब भी दिखाई पड़ता है। स्तनहार पहनने की परम्परा भी देवगढ़ में रही है, इसके मध्य से मोतियों की एक लड़ी स्तनों के बीच से होती हुई नाभिपर्यन्त लटकती थी। मोहनमाला का यहाँ पर्याप्त प्रचार था। बाजूबन्द (केयूर) प्रायः सभी स्त्रियाँ पहनती थीं, पर वह प्रारम्भ में एक चौड़ी चूड़ी के आकार में बनता था और पीछे उसमें जड़ाव आदि मिलने लगता है। हाथों में चूड़ियाँ एक या दो से लेकर बीस-बीस तक पहनी जाती थीं। कंकण भी पहने जाते थे।' बघमा के चूरा, बोहटा, हथफूल आदि पहनने का पर्याप्त प्रचलन था। आरसी और अंगूठियाँ पहनने का प्रचार बहुत था। वे तर्जनी, मध्यमा आदि के अतिरिक्त अंगुष्ठ में भी पहनी जाती थीं। यहाँ की सभी स्त्रियाँ कटिसूत्र तथा मेखला धारण करती थीं।12 ये कभी-कभी 1. दे.-चित्र सं. 19-21, 33, 76, 93, 100, 107, 111, 112 आदि । 2. दे.-चित्र सं. 19-21, 33, 93, 95, 97, 99 से 112 तक, 117 आदि। 3. दे.-चित्र सं. 19-21, 98, 100, 103, 106, 108 आदि। 4. दे.-चित्र सं. 19, 20, 95, 99. 100, 107. 122 आदि । 5. दे.-चित्र सं. 19, 95, 96, 100 आदि। 6. दे.-चित्र सं. 19, 20, 21 आदि। 7. दे.-चित्र सं. 19, 95, 96, 97, 99, 100 आदि। 8-9 दे.-मं. सं. चार के प्रवेश-द्वार की विभिन्न मूर्तियाँ, मं. सं. 12 के गर्भगृह की अम्बिकामूर्तियाँ, म. सं. चार में जड़ी तीर्थंकर की माता की मूर्ति आदि तथा धर्मशाला में स्थित और जैन चहारदीवारी में जड़ी विभिन्न देवी-मूर्तियाँ। और भी दे.-चित्र सं. 19, 20, 21, 33, 93, 95, 96, 97, 99, 105, 106, 111, 1171 10.दे.-मं. सं. 12 के गर्भगृह के प्रवेश-द्वार के सिरदल पर अंकित सरस्वती और लक्ष्मी की मूर्तियाँ तथा वहीं अन्तराल की मढ़िया में स्थित सरस्वती मूर्ति। और भी दे.-चित्र सं. 19, 20, 95 आदि। ।।.मं. सं. 12 के अन्तराल की मढ़िया में स्थित सरस्वती (चित्र 95) तथा मं. सं. 19 में स्थित सिरहीन देवी (चित्र 97) अपने दायें हाथों में आरसी धारण किये हैं। मं. सं. 12 के गर्भगृह के प्रवेश-द्वार के दायें पक्ष पर प्रतिहारी के दायें हाथ के अंगूठे में भी 'आरसी' देखी जा सकती है। इसी मन्दिर के प्रदक्षिणापथ के प्रवेश-द्वार पर (दायें) गंगा अपनी कनिष्ठा में अँगूठी पहने है। पद्मावती (चित्र सं. 106) और चक्रेश्वरी (चित्र सं. 99) आदि मूर्तियों में भी अँगूठी प्राप्त होती 12.दे..-चित्र सं. 19-21.33.93.95,97, 103-106, 108, 122 आदि। सामाजिक जीवन :: 247 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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