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________________ गया। रथों की परम्परा को अखण्ड रूप में जीवित रखने का श्रेय विशेष रूप से जैनधर्म को ही है। मेला इधर कुछ वर्षों से यहाँ मेला भी भरने लगा है। पहला मेला सन् 1934 में और उसके बाद के सन् 1936, 1939 (रथोत्सव के समय), 1954, 1956 (बहुत बड़े स्तर पर') और 1965 में आयोजित हुए। चातुर्मास, व्रत दीक्षा, पूजन विधान, सतत पाठ आदि धार्मिक प्रभावना की दृष्टि से अब भी यहाँ मुनियों के चातुर्मास (वर्षावास) की व्यवस्था, व्रतियों की दीक्षा", अनेक प्रकार के बृहत् पूजन विधान', सतत भक्तामर स्तोत्र पाठ आदि के आयोजन समय-समय पर होते रहते हैं। इन अवसरों पर निकटवर्ती स्थानों से समाज प्रचुर मात्रा में उपस्थित होकर धर्म-लाभ प्राप्त करता 8. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सूक्ष्म धर्मबोध तीर्थकर की माता के सोलह स्वप्नों, तीर्थंकर के आठ प्रातिहार्यों,10 आठ 1. डॉ. एन. बैंकटराम नय्यर : एस्से आन द ओरीजिन आफ़ दी साउथ इण्डियन टेम्पल्स (मद्रास, 1930 ई.), पृ. 64। 2. डॉ. प्रेमसागर जैन : जैन भक्ति काव्य की पृष्ठभूमि (काशी, 1963 ई.), पृ. 59-61 । 3. इसी समय श्री सिंघई गनपतलाल गुरहा को 'तीर्थभक्त' की तथा सिंघई भगवानदास सर्राफ (ललितपुर) को 'जैन जाति भूषण' की उपाधियाँ दी गयी थीं। 4. इस अवसर पर अखिल भारतीय जैन परिषद का 30वाँ वार्षिक अधिवेशन, राजनीतिक सम्मेलन ___और महिला सम्मेलन आदि सम्पन्न हुए थे। 5. सन् 1965 में यहाँ श्री 108 आचार्य नेमिसागर महाराज (देहली) का ससंघ चातुर्मास हुआ था। 6. अभी सन् 1965 में चातुर्मास के मध्य आयोजित श्री सिद्धचक्र मण्डल विधान के शुभावसर पर श्री 105 पद्मसागरजी ने क्षुल्लक पद की दीक्षा ली। 7. उदाहरणार्थ सन् 1965 में श्री सिद्धचक्र मण्डल-विधान तथा सन् 1967 में श्रीत्रैलोक्य-तिलक__ मण्डल-विधान महोत्सव के साथ सम्पन्न हुए। 8. ललितपुर, जाखलौन आदि निकटवर्ती स्थानों का जैन-समाज समय-समय पर सामूहिक रूप से इस __ प्रकार के सतत पाठों का आयोजन करता रहता है। 9. दे.--मं. सं. 12 के गर्भगृह के प्रवेश-द्वार का सिरदल तथा चित्र सं. 19, 201 10. देवगढ़ की सैकड़ों तीर्थकर-मूर्तियों पर इनके अंकन देखे जा सकते हैं। धार्मिक जीवन :: 229 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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