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स्वर्ग' और सात नरकों का मानचित्र उत्कीर्ण किया हुआ मिला है।
7. धार्मिक अनुष्ठान
मन्दिर प्रतिष्ठाएँ और पंच कल्याणक महोत्सव
यहाँ मन्दिरों और मूर्तियों की अधिकता से यह स्वयं-सिद्ध है कि देवगढ़ में मन्दिर-प्रतिष्ठा और पंचकल्याणक प्रतिष्ठा आदि के उत्सव समय-समय पर होते रहते होंगे। ये उत्सव ऐसे हैं जिनमें साधु (भट्टारक) प्रेरक और प्रतिष्ठाचार्य के रूप में तथा श्रावक आयोजक और अनुष्ठानकर्ता के रूप में भाग लेते आ रहे हैं। इन उत्सवों में निकटवर्ती स्थानों के साधु और श्रावक भी आकर सम्मिलित होते होंगे। इस प्रकार ये अवसर आज की भाँति उस समय भी धार्मिक प्रभावना के श्रेष्ठ-साधन माने जाते थे। उत्सवों की यह परम्परा देवगढ़ में अब तक विद्यमान है।
गजरथ
सन् 1939 में यहाँ जो पंचकल्याणक प्रतिष्ठा हुई थी, वह इसलिए विशेष महत्त्व रखती है कि तब गजरथ भी निकाला गया था। रथ की परम्परा देवगढ़ में थी या नहीं, यह तो नहीं कहा जा सकता, पर है यह बहुत प्राचीन। इसका महत्त्व सभी धर्मों में समान रूप से रहा है। जब मन्दिर-स्थापत्य का आरम्भ नहीं हुआ था, तब रथों से उनका उद्देश्य पूरा किया जाता था। कालान्तर में इन्हीं के आकार पर मन्दिरों का निर्माण हुआ और उनके नाम पर ही मन्दिरों को रथ नाम दिया
1. सोलह स्वर्गों के नाम इस प्रकार हैं- “सौधर्मेशान-सानत्कुमार-माहेन्द्र-ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर-लान्तव-कापिष्ठ
शुक्र-महाशुक्र-शतार-सहस्रारेष्वानतप्राणतयोरारणाच्युतयोर्नवसु ग्रैवेयकेषु विजयवैजयन्तजयन्तापराजितेषु सर्वार्थसिद्धौ च।” -आ. उमास्वामी : तत्त्वार्थसूत्र, पं. पन्नालाल साहित्याचार्य सम्पादित
(सूरत, 2472 वी. नि. सं.), अध्याय 4, सूत्र 19 तथा उसकी व्याख्या। , सात नरकों के नाम इस प्रकार हैं- "रत्न-शर्करा-बालुका-पङ्क-धूमतमो-महातमःप्रभा भूमयो
धनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठाः सप्ताधोऽधः।” (आचार्य उमास्वामी : तत्त्वार्थसूत्र, अ. 3, सूत्र 1)। 5. यह गजय सिंघई गनपतलाल भैयालाल गुरहा, खुरई निवासी की ओर से निकाला गया था।
इसका प्रतिष्ठा-विधि पं. राजकुमार शास्त्री, इन्दौर के आचार्यत्व में मिति माघ सुदी 13, गुरुवार, विक्रम संवत् 1995, वीर निर्माण संवत् 2465 तदनुसार दिनांक 11-1989 से दिनांक )-2-1939)
तक, सम्पन्न हुई थी। । डा. आनन्दकुमा कुमारस्वामी · आर्ट्स एण्ड क्राष्ट्रप. पू. ।। 8-19 |
2228 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
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