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________________ होकर भगवान् पार्श्वनाथ के चरणों में आसीन दिखाये गये हैं । भगवान् पार्श्वनाथ पर जब कमठ नामक आततायी ने उपसर्ग किया तब धरणेन्द्र ने सर्प के रूप में उपस्थित होकर अपनी विशाल फणावलि से भगवान् को आच्छादित कर उपसर्ग से उन्हें अप्रभावित रखा।' इस समूची कथा को एक ही मूर्ति में मूर्तिमान् कर कलाकार ने अपने अपूर्व- कौशल का परिचय दिया है। शूकर को सम्बोधन एक मुनि एक शूकर को उपदेश दे रहे हैं ।" बात यह थी कि यह शूकर उन तपस्या - रत मुनि की सिंह से रक्षा करता हुआ मरकर देव हुआ था और अब अपने पूर्व रूप में ही आकर मुनि से धर्म श्रवण कर रहा है । धर्म के पालन में मनुष्य का दर्जा देवों से भी बढ़कर है, यह जैन धर्म की अपनी विशिष्ट मान्यता है । 6. धार्मिक शिक्षा यहाँ धर्म की शिक्षा उपाध्यायों और आचार्यों द्वारा पाठशालाओं में दी जाती थी । ' इसके लिए वे ग्रन्थों का उपयोग तो करते ही थे, व्यावहारिक ज्ञान के प्रशिक्षण के लिए मानचित्रों का भी प्रयोग करते थे । एक स्तम्भ खण्ड पर तीन लोक, सोलह 1. दे. - (अ) मुनि सुकुमार सेन विद्यानुशासन में भैरव - पद्मावती - कल्प। (व) भद्रबाहु स्वामी : उवसग्ग- हरस्तोत्त, जैन स्तोत्र सन्दोह, पृ. 1-13। (स) तिलोयपण्णत्ती, भाग एक, महाधिकार 4, गाथा 936 1 (द) आचार्य जिनसेन : पार्श्वाभ्युदय । (इ) वादिराजसूरि : पार्श्वनाथचरित । (ई) भावदेवसूरि : पार्श्वनाथ चरित । ( उ ) मल्लिषेणसूरि : भैरवपद्मावती-कल्प (ऊ) जिनप्रभसूरि : विविध तीर्थकल्प में पद्मावती कल्प । 2. कुछ महत्त्वपूर्ण मूर्तियों के लिए दे. - चित्र सं. 106 से 110 तक। 3. मं. सं. 12 के प्रदक्षिणा - पथ और गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर और भी दे. - चित्र सं. 22, 231 4. दे. - विभिन्न पाठशाला दृश्य, चित्र सं. 75, 77 से 82 तथा 85। 5. मं. सं. 15 के महामण्डप में स्थित । 6. तीन लोक ये हैं - अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक । इनके विवरण के लिए देखिए - (अ) बृहत् जैन शब्दार्णव, भाग दो, पृ. 485 1 ( ब ) आ. उमास्वामी तत्त्वार्थसूत्र, पं. पन्नालाल साहित्याचार्य सम्पादित, पृ. 48 और 49 के बीच में संलग्न 'तीन लोक की रचना' शीर्षक मानचित्र | Jain Education International For Private & Personal Use Only धार्मिक जीवन :: 227 www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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