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________________ चक्रेश्वरी कलाकार ने चक्रेश्वरी देवी की अनेक' अद्भुत और कलापूर्ण मूर्तियाँ निर्मित की हैं। यह प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की यक्षी है और अनेक हाथों में चक्र धारण करने के कारण चक्रेश्वरी कहलाती है। चक्र एक ऐसा आयुध है, जिसकी शक्ति इन्द्र के वज्र से भी अधिक होती है। इस देवी का वाहन गरुड़ है, जिसपर सवार होकर वह आदि-तीर्थंकर के धर्म का प्रचार सम्पूर्ण विश्व में करती है। सबसे पहले जबकि कर्मभूमि का उदय हो रहा था, घर-घर में भगवान आदिनाथ के सन्देश को पहुँचाने के लिए इस देवी को गरुड़-जैसे तीव्रगामी वाहन की ही आवश्यकता थी। वात्सल्य की प्रतिमूर्ति अम्बिका - अम्बिका यक्षी की मार्मिक एवं वात्सल्यपूर्ण कथा को एक ही मूर्ति में समाविष्ट करने की कलाकार ने जो सफल चेष्टा की है, उसका उदाहरण भारतीय ही नहीं, विश्व की भी मूर्ति-कला में कदाचित् दुर्लभ है। एक देवी है। वह सिंह पर आसीन है। यह सिंह पूर्वजन्म में एक ब्राह्मण था। वह देवी पूर्वजन्म में उसकी ब्राह्मणी थी। अपनी भूल के पश्चात्ताप में ब्राह्मण उस ब्राह्मणी, जो करुण-मृत्यु के पश्चात् अम्बिका के रूप में अवतीर्ण हुई थी, का वाहन सिंह बन जाता है। ब्राह्मणी की मृत्यु अपने एक पुत्र को गोद में और दूसरे को हाथ पकड़कर लिये हुए हुई थी, इसलिए कलाकार ने भी इन्हें उसी रूप में अंकित किया है। अपने भूखे बच्चों को उसी ब्राह्मणी ने असमय में ही फले हुए आम-फल खिलाये थे। इसलिए कलाकार अम्बिका के एक हाथ में आमों का गुच्छा देता है और पृष्ठभाग में आम का वृक्ष उत्कीर्ण करता है। ममता और वात्सल्य की मूर्तिमती इस देवी की सैकड़ों मूर्तियाँ उत्कीर्ण करके देवगढ़ के कलाकार ने जैनधर्म की महती प्रभावना की है। उपसर्ग-निवारक धरणेन्द्र एवं पद्मावती धरणेन्द्र और पद्मावती नामक यक्ष और यक्षी जो अपने पूर्वजन्म में कुमार 1. दे.--मं. सं. 19 तथा जैन धर्मशाला में प्रदर्शित एवं स्तम्भ क. 11 (चित्र 45) पर अंकित चश्वरी यक्षी की मूर्तियाँ। 2. दे.-चित्र सं. 99, 100 तथा 111। 3. देखिए -(अ) रामचन्द्र मुमुक्षु : पुण्याश्रव कथाकाश, पं. नाथूराम प्रेमी द्वारा सम : .', 1915 ई.), में यक्षी-कथा। (ब) वादिचन्द्र : अम्बिका कथासार । (स) प्रभावन्द :: सीन में विजयसिंः सूरे चरित। (द) पुरातन-प्रबन्ध-संग्रह में देयाः प्रवन्धः।' 4. कुछ सुन्दर भर्तियों के लिए दे. -चित्र सं. 103 में 105 तक तथा 109 । 226 :: देवगढ़, की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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