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________________ मंगल द्रव्यों और नवग्रहों का द्वारों तथा मूर्तियों पर अंकन यह सूचित करता है कि देवगढ़ का जैन समाज न केवल धर्म प्रेमी था, प्रत्युत धर्म की सूक्ष्मताओं और प्रतीकों को भी भली-भाँति समझता था। समन्वय जीवन को धर्म के अनुकूल जीने में उसे विशेष आनन्द मिलता था। वह अर्थ और काम के भी ऊपर धर्म को ला बिठाने में बहुत कुशल था। दो स्थानों पर तीर्थंकर की माता को रत्नजटित शय्या पर एक अत्यन्त मोहक और ऐश्वर्य-द्योतक मुद्रा में लेटा दिखाया गया है। शय्या क्या, उसे तो एक बहुमूल्य सिंहासन कहना चाहिए, जिसके नीचे सिंहों और हाथियों की सुघड़ आकृतियाँ दिखायी गयी हैं। कोई सेविका उन्हें पंखा झल रही है तो कोई उनके चरण सहला रही है। अर्थ और काम का अनोखा संयोग बन पड़ा है। इस सबके ऊपर कलाकार ने चौबीस-तीर्थंकरों की मूर्तियाँ उकेरकर धर्मपुरुषार्थ का अद्भुत समा बाँध दिया है। देवगढ़ के जैन समाज की धर्म, अर्थ और काम के प्रति यह समन्वित निष्ठा निश्चय ही उसे अक्षय-सुख अर्थात् मोक्ष प्राप्त कराने के लिए काफी थी। 9. निष्कर्ष इस प्रकार देवगढ़ का धार्मिक दृष्टि से सर्वेक्षण करने पर अग्रलिखित निष्कर्ष सामने आते हैं1. यहाँ प्रायः आदि से अन्त तक भट्टारकों का प्रभुत्व रहा। धर्म-प्रचार के लिए अध्यापन और सार्वजनिक प्रवचन आदि के अतिरिक्त प्रतिष्ठोत्सव, नृत्य तथा संगीत के आयोजन एवं अतिथि-सत्कार आदि के साधन अपनाये जाते थे। 2. कुछ भट्टारक स्थान-स्थान पर भ्रमण करके भी जैनधर्म का प्रचार करते 1. मं. सं. 12 के गर्भगृह के प्रवेश-द्वार के सिरदल, म. सं. 18 के महामण्डप के प्रवेश-द्वार के सिरदल तथा मं. सं. 31 के प्रवेश-द्वार के सिरदल पर; एवं मं. सं. 12 के गभगृह की मुख्य-प्रतिमा तथा महामण्डप की (दायें से बायें) तीसरी, मं. सं. 13 की (बायें से दायें) 20वीं तीर्थंकर मूर्ति तथा एक अन्य तीर्थंकर मूर्ति के अतिरिक्त जैन-चहारदीवारी की बाहरी उत्तरी भित्ति पर (बायें से दायें) पाँचवीं देवी-मूर्ति के साथ इनका अंकन हुआ है। 2. मं. सं. 4 की भीतरी बायीं भित्ति पर जड़ी हुई एवं मं. सं. 30 में स्थित। 3. दे.-चित्र सं. 931 230 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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