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________________ मुनियों के तीन रूप या प्रतिरूप सामने आये : यथाशास्त्र मुनि, शिथिलाचारी नग्न मुनि, भट्टारक। भट्टारक-परम्परा उक्त तीन भेदों में से दूसरे को भी ‘भट्टारक' कहा जा सकता है। अर्थात् नग्न भट्टारक और सवस्त्र भट्टारक। मूलसंघ के उक्त दोनों प्रकार के भट्टारकों की गणना, पूर्वाचार्यों के मतानुसार पावस्थादि भ्रष्ट मुनियों में होती है तथा यापनीय, द्राविड, काष्ठा संघ आदि साधुओं की गणना जैनाभासों में की गयी है। भट्टारकों से सम्बद्ध विभिन्न उल्लेखों से ज्ञात होता है कि दिगम्बर जैन धर्म में मूलसंघ में भट्टारकों की दो परम्पराएँ रही हैं-(1) सेनगण की और (2) बलात्कारगण की। सेनगणवाले भट्टारक अपने को 'पुष्करगच्छ'' का कहते हैं और वृषभसेनान्वय लिखकर अपना मूल वृषभसेन (ऋषभदेव के गणधर) से प्रारम्भ करते हैं। इस परम्परा 1. यापनीय संघ और साहित्य के परिचय के लिए देखिए-(अ) पं. नाथूराम प्रेमी : जैन साहित्य और इतिहास, (बम्बई, 1942 ई.), पृ. 41-60 और 570 1 (ब) डॉ. गुल चन्द्र चौधरी : जैनशिलालेख संग्रह, तृतीय भाग (बम्बई, 1957 ई.), प्रस्तावना, पृ. 25-32 1 (स) डॉ. विद्याधर जोहरापुरकर : जै. शि.सं., चतुर्थ भाग (काशी, वीर नि. सं. 2491), प्रस्ता. पृ. 2-4। (द) वाचस्पति गैरोला : संस्कृत साहित्य का सं. इतिहास, पृ. 255-59। (इ) पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री : जैनधर्म (मथुरा, 1955 ई.), पृ. 295-961 2. (अ) द्राविड़ संघ के उत्पत्ति-परिचय के लिए देखिए-देवसेन : दर्शनसार : पं. नाथूराम प्रेमी सम्पादित, गाथा 24 तथा 26-27 1 (ब) द्राविड़ संघ और साहित्य के परिचय के लिए देखिए-पं. नाथूराम प्रेमी : जै.सा. इ., पृ. 54-55, 66, 89, 155, 170। (स) डॉ. गुलाबचन्द्र चौधरी : जै. शि. सं., तृतीय भाग, प्र. पृ. 33-42। (द) डॉ. विद्याधर जोहरापुरकर : जे.शि. सं., चतुर्थ भाग, प्र. पृ. 14। 3. (अ) काष्ठासंघ के उत्पत्ति-परिचय के लिए देखिए-देवसेन : दर्शनसार, गाथा 33-35 और 37 । (ब) इस संघ और साहित्य के परिचय के लिए द्रष्टव्य 1) पं. नाथूराम प्रेमी : जै.सा.इ., पृ. 170, 173 आदि । तथा 184, 255-56, 336, 340-41, 344, 357-58, 380, 460, 500, 534 1 2) डॉ. विद्याधर जोहरापुरकर भट्टारक सम्प्रदाय, पृ. 210-12 और आगे। 3) पं. परमानन्द शास्त्री के लेख (क) काष्ठा संघ स्थित माथर संघ गर्वावली और (ख) काष्ठा संघ लाट वागड गण की गर्वावली : अनेकान्त, वर्ष 15, किरण दो और तीन, पृ. 79-84 और 134-42 1 4) डॉ. गुलावचन्द्र चौधरी : जैन शिलालेख संग्रह, तृतीय भाग, प्रस्तावना, पृ. 66-69 । 4. (अ) डॉ. विद्याधर जोहरापुरकर : भट्टारक सम्प्रदाय, प्रस्तावना, पृ. 4 और आगे। (ब) सेनगण की भट्टारक परम्परा के लिए और भी देखिए-1) अनेकान्त, वर्ष 18, किरण 4, पृ. 153-56 1 2) डॉ. गुलाबचन्द्र चौधरी : जै. शि. सं., तृ.भा., प्रस्ता., पृ. 43-45 1 3) डॉ. विद्याधर जोहरापुरकर : जे. शि. सं, च. भा., प्र. पृ. 5-7 । (स) बलात्कारगण के लिए देखिए-जै. शि. सं., तृ. भा. प्रस्ता., पृ. 62-66। 5. देखिए-पं. नाथूराम प्रेमी : जै. सा. इ., पृ. 336, 380, 535। 216 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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