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________________ में त्रिवर्णाचार' के कर्ता सोमसेन आदि भट्टारक हुए हैं। दूसरी परम्परा के बलात्कारगण' वाले भट्टारक अपने को सरस्वतीगच्छ का कहते हैं तथा कुन्दकुन्दान्वय लिखकर अपना मूल कुन्दकुन्दाचार्य से आरम्भ करते हैं । इस परम्परा में बहुत भट्टारक हुए । उनके शिष्य-प्रशिष्य बहुधा विद्वान् होते थे । इन भट्टारकों तथा उनके शिष्यों ने बहुत बड़ी मात्रा में जैन साहित्य का सृजन किया। साथ ही उन्होंने अनेक जैन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठाएँ भी कीं । बलात्कारगण में कारंजाशाखा, लातूरशाखा, दिल्ली-जयपुर शाखा, नागौरशाखा, अटेरशाखा, ईडरशाखा भनुपुराशाखा, सूरतशाखा, जेरहटशाखा आदि चलीं। इनमें उत्तर प्रदेश की शाखाओं के मूल आधार भट्टारक पद्मनन्दी थे । उनका समय वि. सं. 13856 से 14507 तक माना जाता है। उनके तीन प्रमुख शिष्य थे - शुभचन्द्र, सकलकीर्ति और देवेन्द्रकीर्ति । शुभचन्द्र ने दिल्ली और जयपुर की शाखा प्रारम्भ की। सकलकीर्ति ने ईडर की शाखा आरम्भ की और देवेन्द्रकीर्ति ने सूरत की शाखा । अन्य शाखाओं का प्रादुर्भाव इन्हीं के शिष्य-प्रशिष्यों से हुआ । सकलकीर्ति, 8 1. देखिए - 1 ) पं. मिलापचन्द्र कटारिया : जैन सन्देश शोधांक, सं. 7 ( अप्रैल, 1960 ई.), पृ. 255-57 1 2 ) पं. जुगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर' : युगवीर - निबन्धावली : प्रथम भाग (दिल्ली, 1963 .), Į. 64, 172, 306 | 2. (अ) डॉ. विद्याधर जोहरापुरकर भट्टारक सम्प्रदाय, पृ. 39 (ब) जैन शिलालेख संग्रह, भाग 3, प्रस्ता, पृ. 62-66 : 3. इन शाखाओं के प्रमुख भट्टारकों के परिचय के लिए देखिए - डॉ. विद्याधर जोहरापुरकर भ., स., कारंजा - पृ. 48, लातूर- पृ. 79, दिल्ली-जयपुर - पृ. 97, नागौर - पृ. 114, अटेर - पृ. 126, ईडर - पृ. 136, भानुपुरा- पृ. 195, सूरत - पृ. 169, जेरहट - पृ. 2021 4. इन शाखाओं के लिए देखिए वही, पृ. 89। 5. (अ) ये वही पद्मनन्दी हैं, जिनका उल्लेख देवगढ़ के दो अभिलेखों में हुआ है, उनमें से एक राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली में और दूसरा जैन धर्मशाला देवगढ़ में ही प्रदर्शित है। (ब) इस नाम के कम से कम छह भट्टारक और हुए हैं। देखिए - डॉ. विद्याधर जोहरापुरकर : भ.स., पृ. 93 टिप्पणी 32, पृ. 123 टिप्पणी 53; पृ. 76, टि. 29, पृ. 150, पृ. 14 (प्रस्तावना), पृ. 229 । 6. देखिए - बलात्कारगण मन्दिर, अंजनगाँव का अभिलेख । 7. द्रष्टव्य- पं. के. भुजबली शास्त्री : प्रशस्ति संग्रह (आरा, 1942 ), पृ. 89 । 8. इनके विस्तृत परिचय के लिए द्रष्टव्य - (अ) डॉ. कस्तूरचन्द्र कासलीवाल : राजस्थान के जैन सन्त, व्यक्तित्व और कृतित्व (महावीरजी, 1967ई.), पृ. 1-21 | ( ब ) डॉ. कस्तूरचन्द्र कासलीवाल : भट्टारक सकलकीर्ति : जीवन, व्यक्तित्व एवं कृतित्व, जैन सन्देश शोधांक सं. 16, पृ. 181-188 । (स) मिलापचन्द कटारिया : भट्टारक सकलकीर्ति का जन्मकाल, वीरवाणी, व. 21, अंक 24, पृ. 523-24 । (द) पं. कुन्दन लाल जैन एम. ए. आचार्य सकलकीर्ति और उनकी हिन्दी सेवा : अनेकान्त वर्ष 19, किरण 1-2, पृ. 124-28 । (इ) कुन्दन लाल जैन, एम. ए. भ. सकलकीर्ति कृत द्वादश अनुप्रेक्षा चुपई : सन्मति सन्देश, वर्ष 12, अंक 11, पृ. 30-31 1 धार्मिक जीवन :: 217 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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